Thursday, December 31, 2009

राजनैतिक झलक- २००९

२००९ के सुरुवात से ही पूरे देश मै चुनाव को लेकर, राजनीति गहमागहमी रहीं । पूर्ब चुनाव कमिशनर टी.कृष्णमूर्ती का अब के चुनाव कमिशनर नवीन चावला के ऊपर कथित पख्यापात का आरोप लगाने साथ ही महामहिम राष्ट्रपति को हटाने के लिए पत्र लिखना , देश की चुनाव के इतिहास मैं पहली वार हुआ, जो चनाव के स्वच्छता के ऊपर फिर से सवाल खडी किया । फिर भी, आगे नवीन चावला के नेतृत्व मैं देश और तीन राज्यों के चुनाव सुचारू रूप से समपर्ण हुआ। लोक सभा चुनाव मैं , डॉ.मनमोहन सिंग कांग्रेस तथा यु .पी.ए फिर से गडीपाने मैं कामियाब हुए । वेसे ही, ओड़िसा मैं नवीन पटनायक, आंध्र प्रदेश मैं स्वर्गीय राज शेखर रेडी और सिकिम मैं, दोरोजी कुंडू फिर से सता के मलाई चखने के लिए कामियाब मिला । इस लोक सभा चुनाव मैं, पहली वार मीरा कुमार के रूप मैं लोक सभा की प्रथम महिला वाचस्पती बनी। पूर्ब आ.ई.ऍफ़.एस ऑफीसर मीरा कुमार बिहार के सासाराम संसदीय खेत्र से प्रतिनिधित्व करते हें और व बिहार के पूर्ब मुख्यमंत्री जगतजीवनराम के पुत्री
इस साल की चुनाव मै सब से जादा ५५ महिला संसाद के रूप मै चुनाव जीत कर संसद पहंचे। जिस से ठंडे बस्ते मै पड़ी, ''महिला रेजर्वेसन'' विल को फिर से जान मिल गया। उमीद के मुताविक, सरकार संसद मैं ''महिला रेजर्वेसन'' को पेश किया । जिस को जद (यू) , समाजवादी पार्टी और लालु जी की आर.जे.डी इस वील को विरोध किया, जब की बाक़ी दल ने इस विल को सहमति जताई । इस के लिए , संसद मैं कुछ दिन सोरसरवा भी हुआ। इस साल की राजनीतिक इतिहास मै एक दुखद घटना भी घटी। आंध्र प्रदेश के पूर्ब मुख्यमंत्री स्वर्गीय राजशेखर रेडी एक हेलिकेप्तर हादसा मैं मौत होगया। वास्तब मैं, यह एक बहत ही दुखद घटना था । इस के साथ ही, प.बंगाल मैं के लाल गढ़ मैं माओवादियों की हिंसा और भुबनेश्वर राजधानी को अगवा करना, बंगाल मैं कम्युनिस्ट सरकार का कोमजोरी कड़ी को सब के सामने लेआया। वेसे ही, ओड़िसा मैं विधान सभा के एक दीन बढाकर
जल्दवाजी मैं ''विश्वविद्यालय विल'' को परीत करना भी राजनैतिक खबरों मैं सुर्खिया बनी ।
पूर्ब केंद्रमंत्री जसवंत सिंह को अपनी अपती जनक तिपनी के लिए भाजपा से हटाना और आर.एस.एस का नयी युवाओं के हाथों मैं, भाजपा की स्टीयरिंग दिलाने ले लिए आडवानी और राजनाथ सिंह को अपने पद से इस्ताफा देना भी राजनीती गरमा रखा । संसद और देश के विभीन्न प्रदेशों की विधान सभा मैं महंगाई को लेकर सदन की कार्य मैं वार वार रुकावट बनी । जब की महारास्त्र के विधान सभा चुनाव मैं कांग्रेस-एन.सी.पी गठ्वंधन को फिर से बहुमत मिली और राज ठाकरे की एम्.एन.एस ने शिवसेना-भाजपा गठ्वंधन की वोट बैंक मैं सेंध मारकर अपनी जीत का परचम लहराया। वेसे ही ओड़िसा मैं खान की घोटला से परेसान ओड़िसा सरकार सदन की कार्य पूरे होने से १५ दिन पहले ही सदन को स्थगित करना और इस के विरुद्ध मैं ''प्रतीक विधानसभा'' चलना वाकई राजनैतिक पंडितों को हैरान करदिया। साथ ही, १७ साल वाद , संसद मैं लिब्रहान आयोग की रिपोर्ट पेश करना, विपख्य के विरोध हेतु, संसद की कार्य मैं वार वार वाधा उपजी और सदन को वार वार मूल तबी किया गया । इस के अलावा, तेलंगाना राज्य गठन karne के लिए, हैदरावाद मैं अनसन करना और उस के वाद केंद्र के तरफ से हरी झंडी दिखाना, आन्ध्र के राजनैतिक माहोल मैं भूचाल लाया । केंद्र की इस फैसला को रायलसीमा और तटीय आंध्र के सभी संसद और विधायक सामूहिक त्यागपत्र देना, प्रदेश की राजनीति गर्माया । गौरतलब हें, यदी तेलंगाना गठन होता हें, हैदरावाद तेलंगाना की हिस्से मैं चलाजायेगा। जिस को रायलसीमा और तटीय आन्ध्र के नेता विरोध कर रहे हें । वहाँ, अब भी स्तिथी मैं सुधर नही हुआ हें । इस इस साल के आखिर मैं, वीजेपी की वागदौर राजनाथ के बदले नागपुर के नितीन गडकरी ने कमान संभाली, जब की विपख के नेता के रूप मैं आडवानी के बदले दिल्ली के सुषमा सवराज संभाली। जब की दल के संम्भिधान मैं एक संसोधन लाकर अडवानी को भाजपा संसदीय दल के नेता और यू.पी.ए तरह एनडीए की कमान आडवानी के हाथो थमाई गयी। एन.डी.ए की संजोजक के रूप मैं जेडयू के सरद यादव बनाया गया, जॉब की राज्य सभा मैं विपख्य नेता अरुण जेटली को नही बदला गया।
इस साल की राजनैतिक आकाश मैं उजाला और अन्धेरा के विच खूब छुपा रुस्तम खेला गया । यह आगे और बढ़ने की संम्भावना हें । कियों की, अब झारखण्ड की चनाव परिणाम आचुकी हें, और इस से सुरु होगी राजनीति काउनडाउन - २०१० । इस के अलावा, तेलंगाना मुधा , लिब्रहान कमीशन की रिपोर्ट, २०१० की राजनीति को पूरा गरम रखेगी। जब की, महिला रेजर्वेसन विल के ऊपर गिरिजा ब्यास कमीटी की रिपोर्ट और अल्पसंख्यक को रेसेरवेसन देना जेसे विषय नयी साल की राजनीति की तापमान ऊपर रहेगा । इस के अलावा, विपख्य के नयी नेत्री और भाजपा के नया प्रमुख के कामकाज केसा रहेगा, यह देखनेलायक होगी । खैर, बात जो भी हो , हम तो यह आशा करते हें, इस सारे समस्याओं का जल्द से जल्द समाधान हो । परन्तु , यह आशा करना बेबकुफ़ी होगी, नयी साल की राजनैतिक तापमान, इस साल की राजनैतिक तापमान से कम होगी ।


Friday, November 27, 2009













''हे मेरे वतन के लोगों , जरा याद करो कुरुवानी'' ..... लता मंगेशकर जी की स्वर से आवाज जुनजती, ये गीत सुन कर हर भारतीयों की धड़कन रुक जाती हें । कियों की , ये गीत उन सहीद जवानों को स्रधान्जली हें, जो ख़ुद की जान की फिक्र नही करते हुए , देश की रख्या के लिए कुर्वान करते हें । आज से ठीक एक साल पहेले, २६ नवम्बर को आतंकियों ने देश की वाणिज्य सहर मुंबई पर अचानक हमला कर दिया । दर्शोदों ने मुंबई के ताज होटल , ओबरै होटल , नारिनाम हाउस, वि.टी.स्टेसन और सी.एस.टी.सी स्टेसन पर हमला कर अंधा धुन गोली चलाई । इस मैं अनेक निहत होने के साथ साथ अनेक गंभीर रूप से घायल भी हुए । इस द्वारान , अनेक लोग अपनी जान को दाँव पर लगा कर दुसरे की जान बचाई । परन्तु , इन आतंकियों हमला मैं , अपनी वीर पुत्रों को भी खोया । हमले मैं , मेजर .उनी कृष्णन , मुंबई ए.टी.एस की चीफ - हेमंत कलकारे, जोइंट पालिश कमिशनर-अशोक आम्पते और एन्कोउन्टर स्पेसिअलिस्ट विजय सालेस्कर सहीद हुए । वाकई, इस आतंकियों घटना दर्दनाक और भयानक हें। हम एक हें और हम साथ साथ हें , यह हमारे देश की ताकत हें और कोई हमारे अस्मियता के ऊपर कितना भी आंच आने की कोशिश करे , वे कभी भी सफल नही होंगे । जब तक, हमारे वीर जवान देश के लिए सुरख्या कवच हें , जब तक हम जाती, वर्ण , धर्म और भाषा जेसे अनेक विभेदाओं के विच एक हें , तब तक कोई भी हमें कुछ कर नही कर सकता ।

Saturday, November 7, 2009

आफत मैं हें देश की भी.भी.आई.पि ट्रेन.....











२७ ओक्टोबर २००९ का दिन भारतीय रेलवे के लिए एक काला दिन था और ट्रेनों मैं सफर करने वाले यात्रियों के लिए एक दर्दनाक और दुखद दिन था । कियों की उस दिन , दोहपर मैं , नक्सलियों के द्वारा भुबनेश्वर से दिलली के लिए जाने रही २४४३ ए भुबनेश्वर राजधानी ( भाया- टाटा नगर जं ) समर स्पेशल को बनषताला मैं अगवा करलिया गया था । इस स्टेसन झारग्राम स्टेसन से १० किलोमीटर के दुरी पर हें । झारग्राम स्टेसन, खड़गपुर जं - टाटा नगर जं के विच मैं पड़ता हें । इस ट्रेन मैं लगभग १२०० यात्री सवार थे । जब ट्रेन बनषताला स्टेसन के आउट डोर सिग्नल पारी कर रहा था , तब किसी ने लाल झंडे देखा कर ट्रेन को रोक दी । चालक ने भी , ऐमरजेंसी ब्रेक लगा दी । ट्रेन रोकते ही , छुपे हुए , ६०० नक्सलियों ने ट्रेन को घेर लिया ट्रेन के चालक को अपने कब्जे मैं ले लिया और सभी यात्रीयों को तत्काल उतारने के लिए बोल कर, ट्रेन की विजली कनेक्सन काट दी । उसके वाद , नक्सलियों ने ट्रेन की फर्स्ट एसी ( भी .भी .आई .पी. कोच ) मैं तोड़ फोड़ किया । नक्सलियों ने ट्रेन वगियों के ऊपर उनके नेता छ्त्रधर महतो को तत्काल जेल से रिहा करने की मांग के वारे मैं लिखा । सबसे पहले तो, नक्सलियों ने ट्रेन के दोनों चालक आनन्द राव और के.स .राव को अपने कब्जे मैं लेकर, उन दोनों के माद्यम से रेलवे के वरिस्थ अधीकारियों से बातचीत किया । उसके बाद , प.बंगाल के मुख्यमंत्री बुद्धदेव भटाचार्य और बाद मैं , रेल मंत्री ममता वानार्जी से बात करके , उनके नेता छ्त्रधर महतो को तुंरत छोड़ने की मांग किया । स्याम होते ही और सी.आर.ऍफ़ वल आने से पहेले , नक्सलियों ने ट्रेन और चालक को मुक्त कर के घटना स्थल से भाग निकलने मैं कामियाब रहे । उसके वाद , सम्पूर्ण रूप से जाँच परताल करके ट्रेन को रात करीब ८ बजे सी.आर.ऍफ़ की निगरानी मैं दिल्ली के लिए रवाना किया गया । वेसे, नक्सलियों ने यात्रीयों को कोई नुक्सान नही पहंचाया ।
परन्तु , भुबनेश्वर राजधानी को दिन दाहादे अगवा करना, यह बात ट्रेन मैं सवारी करने वालें यात्री कितना सुरखित वह पता चलता हें । यह आलम राजधानी जेसे भी.भी.आई.पी ट्रेन का हाल हें , आप सोचिये दुसरे आम ट्रेनों मैं सुरख्या का किया इंतजाम हुआ होगा । भुबनेश्वर राजधानी को हाईजेक करना पुरा प्री-प्लान था। कियों की , नक्सलियों ने ट्रेन को आउट डोर सिग्नाल मैं रोक देना और निर्भय से ट्रेन को घेर लेना । कियों की , नक्सलियों को यह भी पता था , उस दिन ट्रेन मैं कोई सुरख्या कर्मी मजूद ही नही थे और नक्सलियों के नेता संतोष पात्रा ने मीडिया को भुबनेश्वर राजधानी की अगवा के वारे मै बताना आदी सारे बात साफ़ इंगित करता हें , नक्सलियों की यह पूरा प्री-प्लान था और उनको ट्रेन की वारे मैं पल पल की ख़बर पता था । रेलवे और सरकार जितने भी दाबे करे, हर वक्त नक्सलियों ने सुरख्या की पोल खुलते हें । जब करवाई किया जाता हें , तब तक नक्सलियों के द्वारा घटना को अंजाम दिया जुका होता हें । वेसे , भुबनेश्वर राजधानी को अपहरण करना , नक्सलियों की एक पब्लिसिटी स्टांड भी था ।
सरकार और नक्सलियों के विच आम जनता फस जाते हें और आखिर उनोको ही परीसान झेलना पड़ता हें । हर घटना के बाद , कुछ जोरदार कारवाई किया जाता हें , उसके बाद वही पुरानी कहानी । आखिर, केन्द्र और राज्यों सरकार क्यों कड़े कदम नही उठाते हें ? क्यों हम हर वक्त लाचार हो जाते हें ? मंत्री , विधायक , एम्.पी , नेता तो जेड़ सीक्युरिटी के अन्दर रहेते हें , उनको पता नही लोग रोज किस तरीके से समस्याओं को झेलते हें । दिमाग हर पल डर बेठता हें , आज कुछ ना हो जाए । इधर केन्द्र ने राज्यों को और राज्यों ने केन्द्र को आपसे कीचड़ फेंक कर अपने जिमीदारी से पला झाद्लेते हें । इधर , सी .आर .पी. असली नक्सलियों को पकड़ने बदले निर्दोस आदिवासियों को पकड़ लेते हें , जिस का परिणाम सबको भुगतना पड़ता हें । इस बात को नक्सलियों के द्वारा आदिवासियों को सरकार के खिलाप मोर्चे मैं सामिल कर के फाईदा उठाते हें । जाहिर हे, आदिवासी नक्सलियों के साथ ही देंगे । साथ ही साथ , नक्सलियों के द्वारा लोगो को हर चीज मुहया करते हें , सरकार की मदत से मायूस आदिवासी नक्सलियों के साथ देते हें । राज्यों के पोलिस का बात ही मत कीजिये । कियों की , सारे के सारे भ्रस्ताचार मैं पि.च .दी. हें । लोग को इस तरीके से लुटते हें , जिस से लोग पोलिस से परिसान होकर नक्सलियों के साथ देते हें । हम नक्सलियों को कुसूरवार ठरना जायज हें, परन्तु उस से पहेले , ख़ुद देखिये हम कितने पानी मैं हें ? हमारे सीस्टम की भ्रस्त चीज को नक्सलियों ने उनके लिए इस्तमाल करते हें । बात यह हुआ , खुट तो हमारे विच हें । यदी , तत्काल समय मैं , पोलिस भ्रस्त ना होता , ना सरकार चैन की नींद सोता , तब आज यही नक्सलियों की भयानक परिणाम देखना ना पड़ता । आखिर , एक ग़लती से ही आनेवाले वक्त मै भारी पड़ता हें । अभी भी कुछ बदला नही , यदी सरकार चाहेगी हालत सुधर सकते हें । परन्तु, मुझे भी पता हें और आप को भी पता हें , यह भारत हें जी , यहाँ के नेता ,मंत्री, सरकार और प्रशासन कभी अपनी गलतिया मानते नही , भले ही लोगों की जाने जाए । उनका किया जाता हे भाई, वह तो चबिसो घंटा जेड़ सुरक्या अन्दर रहेते हें । उनका थोड़े ही कुछ होने वाले हें । जो भी , यह बात साफ़ हें , जब तक नेता , मंत्री , सरकार और प्रशासन भ्रस्ताचार से मुक्त नही होंगे , जब तक यह सारे आपनी दईत्व को ठीक से नही निभाएंगे , तब तक नक्सलवादियों, माओवादियों के साथ साथ आतंकवादियों को भी ख़त्म कर नही सकते .....

Friday, November 6, 2009

पंजे का परचम......

आम चुनाव मैं जीत की खुशी का खुमार अभी कम नही हुआ था कि तिन राज्यों मैं हुए विधानसभा चुनाव मैं कांग्रेस का विजय- ध्वजा एक वार फ़िर लहराया । लोकसभा चुनाव के बाद एक बार फ़िर अरुणाचल प्रदेश , हरियाणा और महाराष्ट्र मैं कांग्रस के पख्य मैं इस कदर झूमकर बयार बही कि मतदाताओं ने तिनं पूर्ब मुख्यमंत्रियों को ही सूबे की सिंहासन पर पुनः स्थापित कर दिया । अरुणाचल प्रदेश मैं दोरजी खांडू, हरियाणा मैं भूपेंद्र सिंह हुडा, महारष्ट्र मैं अशोक चह्वाण के सिर पर फ़िर ताज बंध गया ।
इन चुनाव के परिणाम जो भी हो , एक वार फ़िर साबित होगया, विभिन्न घटना क्रम और आरोप-प्रत्यारोप के बाबजूद , जनता फिलहाल तो हाथ के साथ नज़र आरहा हें । अरुणाचल प्रदेश मैं चीन की चिकचिक का मुहं तोड़ जबाब देते हुए , चौथी वार कांग्रस के दोरजी खांडू को सता की चाबी थमाई । जब की महाराष्ट्र मैं भोट प्रतिसत कम होने की बाबजूद, जनता ने कांग्रस -रांकपा गठवधन को बहुमत देने साथ ही , कांग्रस के अशोक चह्वाण को फ़िर से दुवारा सता की मलाई चखाया । वेसे ही , हरियाणा मैं, कांग्रस को पिछले चुनाव मैं भले ही कम सीटें मिले , परन्तु कांग्रेस के भूपिंदर सिंह हुडा ने फ़िर से गडी पाने मैं कामियाब रहे । हरियाणा मैं यह पहली वार हुआ , किसी वक्ती को लगातार दूसरी वार सत्ता नशीब हुआ । इन तिन विधानसभा चुनाव मैं, कांग्रस ने लोकसभा चुनाव मैं मिली जित को दोहराया, जब की भाजपा को फ़िर हार की मुहं खाना पडा । इन विधानसभा चुनाव मैं , भाजपा को मिली हार के वाद, फ़िर से पार्टी के अन्दर नेतृत्व परिवर्तन को लेकर घमासान तेज होगया हें । पहली से ही , राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तरफ से भाजपा के ऊपर आडवानी और राजनाथ सिंह को हटाने के लिए दवाब हें । अब मिली हार से , फ़िर पार्टी के अन्दर कुर्सी को लेकर घमासान होना लाजमी हें ।
तिन विधानसभा चुनाव मैं एक बात गौर करनेवाला था - छोटे दोलों की सीट दर्ज करना । कियों की , महाराष्ट्र मैं , राज ठाकरे की नव निर्माण सेना (मनसे) ने १३ सीटों पर जित दर्ज की । जब कि , मनसे ने शिवसेना -भाजपा गठवधन को ४० सीटों से अधिक सिट पर नुक्सान पहंचाया । जिसका फाईदा सीधे
कांग्रस-रांकपा गठवधन को हुआ । वेसे ही , अरुणाचल प्रदेश मैं , रेल मंत्री ममता वानार्जी की त्रूलमूल कांग्रस पार्टी ने चुनाव मैं मैं कूद कर ५ सीटों पर वाजी मार ली । सायद यह पहला मौका हें , ममता वानार्जी की पार्टी को अपनी राज्य प.बंगाल के वाहर , किसी राज्यों मैं शानदार जित मिला । ये बात, कांग्रेस को थोड़ा सोचना चाहिए ।
चुनाव परिणाम जो भी हो , यह चुनाव कांग्रस की '' विजन फॉर राहुल ताजपोशी- २०१२ '' के लिए अच्छी ख़बर हें । इन दिनों समय और भाग्य कांग्रस के साथ हेतु , पिछ्ले लोकसभा चुनाव और मौजूदा संपर्ण हुए विधानसभा चुनाव मैं सबसे ज्यादा कांग्रेस को फाईदा मिला । इसलिए , कांग्रसियों ने फ़िर आश लगा कर बेठें हें , आगे फ़िर कांगेस की पुरानी '' गांधी-गोल्डन पीरियड '' वापस आजायेगा । फिलहाल कांग्रस ये कोशिश मैं हें , अपितु इन दिनों मिल रहीं सफलता की वलबूते पर आनेवाले लोकसभा चुनाव मैं , पुनः पंजे का परचम लहरा सके ।

Friday, June 12, 2009

इतिहास की दहलीज पर भारतीय महीला.....

मौजूदा १५ वी लोक सभा मैं चारो तरफ महीलाओ की बोल बाल हे । क्यो की , पहेली वार , ५८ महीला सांसद ,जनता के द्वारा चुन कर संसद आए । स्वाभाबीक रूप से , इस वार लोक सभा की बाचस्पती की पद भी पहेली वार मीरा कुमार की रूप मै एक महीला की खाते मै ही गयी । जो बिहार की सासाराम संसदीय खेत्र से कांग्रेस की प्रतियासी की रूप मै जीत दर्ज की थी । व , अब तक ५ वार सांसद के रूप मैं जनता के द्वारा चुन कर संसद आए । अब राजनैतिक गलियारों मैं चर्चा जोर पर हें , मीरा कुमार की बाचस्पती की रूप मै चुन जाने के बाद ,'' महीला आरख्यन वील'' को पारीत कर ने मैं अहम अहम मदत मिल सकता हें । वेसे , यदि लोक सभा मै , ''महीला आरख्यन वील'' को पारीत कर ने मैं , सायद यु .पी .ए सरकार को इतना मसतकत करना नही पड़ेगा। क्यो की , लोक सभा मै कांग्रेस और यु .पी ए की घटक दल की समर्थन के साथ साथ एन.डी.ए की बी.जे.पी और उसके घटक दल की समर्थन भी ''महीला आरख्यन वील'' के साथ हे । हाँ , बी,जे.पी की साथी ज.डी.यु इस के खिलाप हे । ज.डी.यु के साथ साथ समाजवादी पार्टी और आर.जे.डी भी इस वील को विरोध कर रहे हें ।
बहत दिन से , ''महीला आरख्यन वील '' ठंडे बसते मैं पडा था । क्यो की , एन.दी.ऐ की सरकार की अमल
मैं पूर्ब प्रधानमंत्री अटल विहारी बाजपेई ने इस वील को पारित करने के लिए कोशिश किया था , परन्तु, घटक दल की विरोध के हेतु और संसद मैं एन.दी,ऐ के पास बहुमत नही होने वजे से, अटल जी ने इस विल को आगे नही बढाया । परन्तु, अब कांग्रेस के पास तो बहुमत हें और साथ ही उसके घटक दल इस वील को सहमती दे चुके हें
अब, कांग्रस तो इस मुधे को अगले लोक सभा चुनाव मैं भुनाने के लिए को कसर नही छोडेगी। खैर ये तो था , ''महीला आरख्यन वील '' और इस से जुड़े राजनीती ।
परन्तु, भारत मैं , बहत महीलाये हें , जो देश की नाम को दुनिया भर मैं रोशन कर चुकी हें । उनमें से, विजय- लखमी पंडित, इन्दीरा गांधी , सरोजिनी नाईदु , मदर तरसा, कल्पना चावाला , लता मंगेशकर और सईना नेहेवाल जेसे महीलाये प्रमुख हें । आज , हम हामारे देश की कोरोदो मतदाताओं के ऊपर गर्व होना चाहीये , क्यो की वह , आज देश मैं महिला नेतृत्व को हमेसा भरोषा किया हें, उनमें से , सोनिया गांधी , मायाबती , जयललिता,
ममता वानार्जी, और वसुंधरा राजे जेसे सक्सीयत को लोगो ने भारी मोटो से जीता कर सता की चाबी दिया । इस सबसे बड़ी बात हें , हमारे देश की मौजूदा रास्त्रपती प्रतिवा देवी सिंह पाटिल एक महिला हें । आज महिलाओं ने पुरुस केंद्रित समाज मैं , आहिस्ता आहिस्ता जड़ मजबूत कर के , आज समूचे भारत वर्ष के साथ पुरे दुनिया मैं अपनी पहेचान बनाई ।
एक दीन था , हामारे देश की महीलाएं घर की काम की अलावा और कुछ भी नही आता था। व , घर से कभी भी नही निकल पाते थे । परन्तु , अब वक्त बदल चुका हें । आज ईम्तीहान मैं लड़को से लडकिया पढाई मैं आगे हें और हर मोड़ , हर जगह पर पुरूस से महीलाएं सबसे आगे हें । आज स्तिथी और वक्त दोनों बदल चुका हें । आज महिलायें इतने आगे जाने के बाबजूद भी , हम अभी भी दहेज़ उद्पिदन , मानसिक यातना और बलात्कार जेसे घिलोना वारदातें हमारे सामने आती हें । वाकई, ये सभी वाएदातें सरमनाक हें । फ़िर भी , आमिर खान जेसे ऐक्टर के द्वारा लोगो को जागृत करने के लिए जो पहल किया जा रा हें, व वास्तब मैं सरकार की कदम की तारीफ़ करना चाहिए । विभीन्न समस्या से भरा इस भारत वर्ष मैं , महिलाए आगे जा कर देश की प्रगती मैं एक अच्छी साझेदारी निभाएंगे , ये ही हमारे आशा और उमीद हें ।

Monday, June 1, 2009

भारतीय जन-आन्दोलन और नक्सलवादी

कुछ दिन पहेले , देश मैं चुनाव संपर्ण हुआ । सरकार के तरफ से चुनाव को सांति मै करने के लिए कड़े कदम उठाये थे । विशेष रूप से , नक्सल इलाकों मैं , राज्य सरकारों ने बहत अहम कदम लिया गया था। परंतु सारे वादे खोकले निकला । ओडिशा, झारखंड राज्यों मैं तो नक्सल ने जेसे तबाही मचाया , इस का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता हें, फ़िर जब दुवारा चुनाव किया गया , तब पोलिंग बूथ आकर भोट डालने के लिए किसीने भी हीमत नही जुटा पाया। कियु की, नक्सल ने कहीं ई.भी.एम् मशीन को तोडा , कहीं पोलिंग ऑफिसर को जक्मी किया । नक्सलवादियों ने , झारखंड राज्य मै पहली वार , एक पसिंजर ट्रेन को कुछ वक्त तक अपहरण कर लिया । चुनाव के द्वारान ,ओडिशा के माल्कंगिर जिले मैं , नक्सलवादियों ने जिस तरह से , अपनी मंसुवे को अंजाम दिया, इस से साफ़ पता चलता हें , हाल ही कुछ दिनों मैं , नक्सलवादियों की खोपनाक तस्वीर सामने नजर आरहा हें । अक्सर , हम नक्सल वारदातों के वारे मैं , आए दिन सुनते हें । विशेष रूप से, ओडिशा , झारखण्ड , आन्ध्र प्रदेश और छातिशगद राज्यों से रोज नक्सल की भयानक कारनामें सुर्खिया बनती हें । जो केन्द्र और राज्य सरकारों के लिए सीरदर्द बना हुआ हें । यहाँ पर , हमारे मन मैं सवालों से विचलित कर रहा होगा, आख़िर नक्सलवादी काहाँ से आए ? कियु आज नक्सलवादी भयानक हो गए ?
पश्चिम बंगाल के पर्वतीय जिले दार्जिलिंग के नक्सलवाड़ी पुलिस थाने के इलाके मैं १९६७ मैं एक किसान विद्रोह उठ खडा हुआ । इस विद्रोह को अगुवाई माक्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के स्थानीय केडर के लोग कर रहे थे । नक्सलवाड़ी पुलिस थाने से शुरू होने वाला यह आन्दोलन भारत के कोई राज्यों मैं फ़ैल गया । इस आन्दोलन को ''नक्सलवादी आन्दोलन'' के रूप मैं जाना जाता हें । १९६९ मैं नक्सलवादी सी.पी.आई. (एम्) से अलग हो गए और सी.पी.आई.(माक्सवादी-लेनिनवादी) नाम से एक नयी पार्टी चारु मजुमदार के नेतृत्व मैं बनायी । इस पार्टी की दलील थी की भारत मैं लोकतंत्र एक छलावा हें । इस पार्टी ने क्रांती करने के लिए गुरिल्ला युद्घ की रणनीती अपनायी ।
नक्सलवादी आन्दोलन ने धनी भुस्वमियों से बलपूर्वक जमीन छीनकर गरीव और भूमीहीन लोगो को दी । इस आन्दोलन के समर्थक अपने राजनैतिक लख्यो को हासील करने के लिए हिंसक साधनों के इस्तेमाल करने मैं दलील देते थे । इस वक्त कांग्रेस -शासित पश्चिम बंगाल सरकार ने निरोधक नजरवंदी समेत कई कड़े कदम उठाये , लेकिन नक्सलवादी आन्दोलन रूक न सका। बाद के सालों मैं , यह देश के कई भागो मैं फ़ैल गया। नक्सलवाड़ी आन्दोलन अब कई दलों मैं से कुछ जेसे सी.पी.आई.(एम्एल-लिबरेशन ) प्रमुख हें । फिलहाल ९ राज्यों के लगभग ७५ जिले नक्सलवादी हिंसा से प्रभावित हें । इनमें अधिकार बहुत पिछडे इलाके हें और यहाँ आदिवासियों की जनसंख्या ज्यादा हें । इन इलाकों मैं बंटाई या पटते पर खेतिवादी करने वाले तथा मजदूरी जेसे अपने बुनियादी हकों से भी वंचित हें । जबरिया मजदूरी , वाहरी लोगों द्वारा संसाधानों का दोहन तथा जमीदारों द्वारा शोषण भी इन इलाकों मैं आम बात हें । इन स्थितियों से नक्सलवादी आन्दोलन मैं बढोतरी
हुई हें ।
नक्सलवाद की पृष्ठभूमी पर अनेक फ़िल्म भी बनी हें। महेस्व्ता देवी के उपन्यास और गोविन्द निहलानी के द्वारा निर्धेशीत ''हजार चौरासी की माँ '' एसी ही एक फ़िल्म हें ।
आज नक्सल आन्दोलन , देश की एक प्रमुख समस्या रूप मैं खडी हें । आतंकवाद के साथ नक्सलवाद , सरकार के लिए एक चुनौती बनगया हें । यदी , तत्कालीन पश्चिम बंगाल सरकार , तब विद्रोह की ऊपर कारवाई करने की बदले , वे विद्रोह स्थाई हल के लिए कोशिश किए होते , आज देश के सामने नक्सलवादी के रूप मैं नही खडी
होती । यदी, राजनैतिक पहल की कमी, भोटे बैंक की खियाल और पुलिस की भ्रस्त नही होते , बहत पहेले ही, इस समस्या की समाधान किया गया होता । परन्तु, आज नक्सलवादियों को पकड़ने के लिए , सरकार करोडो रूपये , पानी के तरह बहा रहे हें । परिणाम , दिन पर दिन , ये समस्या भयंकर होती रही हें । इसलिए , केन्द्र और राज्य सरकारों को ''नक्सल समस्या'' और इन से जुड़े आन्दोलन की एक नयी तरह से हल निकालनी होगी । दलगत राजनीती से ऊपर उठ कर , कोई पहल किया जाए , तब इस समस्या को हल हो सकता हें ।

भारतीय रेल या बंगाल रेल ?

भारतीय रेल या बंगाल रेल की शीर्सक को पढ़ कर , पाठक यदि असमंजस मै मत रहिये । जी हाँ , प्रधानमंत्री डॉ .मनमोहन सिंह की विभागों का बाँटने के वाद , पश्चिम बंगाल की त्रुलमूल कांग्रेस की नेत्री ममता वानार्जी को रेल विभाग मिलने के बाद , ये ही लग रा हें । ममता दीदी , अब एक नया परंपरा सुरु किए । व न्यू दिली के रेल भवन के बदले , कोलकाता के पूरब रेल मै अपनी काम काज सुरु किया । ममता दीदी की २०११ मै , पश्चिम बंगाल मै होने वाले विधान सभा चुनाब के लिए , एक पालिटिकल स्टांड हें । परन्तु, याहा पर ये सवाल उठता हें , रेल विभाग जेसे महत्वपूर्ण विभाग की आंचलिककारन करना किया सही हें ? फ़िर से, राजनैतिक फाईदा के लिए, रेल विभाग का राजनैतिककरण तो नही हो रा हें ? ''आमार बांग्ला '' के नाम पर ममता वानार्जी रेल विभाग को पुरे तरह से , पश्चिम बंगाल के अन्दर , आपनी राजनैतिक फाईदा के लिए इस्तेमाल किया कर रहे हें ।
ये सभी का जबाब जो भी हो , सच ये ही हें, महारासत्रा मै भयंकर रूप लेना वाला आन्चिलिक्तावाद, आज सरकारी विभाग को भी अपनी वस मै ले चुका हें । इस मैं कोई दोहराई नही, ममता वानार्जी के वाद , अगले रेल मंत्री न्यू दिली के बदले अपनी राज्य के किसी रेल जोन मै काम काज करेंगे । तो, दिली मैं रेल विभाग का हेड आफिस रहेने का कोई मतलब ही नही हें । आज ये आन्चिलिक्वाद खतरनाक हो रा हें । महारासत्रा मै उत्तर भारतीय के खिलाप विस के विज बुना जा रहा हें , तामिलनाडू मैं हिन्दी भाषी लोगो के खिलाप अपनी जहर उगालते हें । यदि , आज तत्कालीन उप- प्रधानमन्त्री वलभ भाई पटेल होते , उनको जरुर ठेस पहंचता । कियु की, व बिखरते भारत को एक करने के मैं उनका योगदान, आज ब्यर्थ हो गया । आज की नेता , अपनी स्वार्थ के लिए , ये आन्चिलिक्बाद का जहर , जो लोग के मन मै फेला कर फाईदा उठाते हें । हम , उनके ताल मै ताल मिला कर हाँ भरते हें । भारत मै , संभिधान को लागू करने के वक्त कहा गया था, भारत अनेक धर्म , अनेक भाषा और अनेक जाती के बाबजुड़ भारत एक हें । फ़िर , आज हमारे विच आपसी द्वेष कियु ? आजादी से पहले , कभी एसा हुआ था, ना आजादी के वाद कभी हुआ हें । ये कुछ साल की अन्दर , हमारे अन्दर दुसरे की प्रती इतने नफरत कियु ?
आज ममता वानार्जी की पहल पर भले ही कोई विरोध ना करे , यदि कल दुसरे नेता एसे करते , निश्चित रूप से विरोध होगा । नेताओं को अपनी मौजूदा फाईदा से जुड़े कोई बड़े कदम उठाने से पहेले , इस का भाबिस्य परिणाम के वारे मैं जरुर सोचना चाहिए । इसलिए , ममता वानार्जी को ''भारतीय रेल'' को , अपनी राजनैतिक फाईदा के लिए , ''बांगला रेल '' की सकल देना ठीक नही हें ।

विश्व तोब्बाको निषेध दिवस

मई ३१ को विश तोब्बाको निषेध दिवस के रूप मै मनाया जाता हें। ये दिन, विश स्वाथ्य केलेंडर मै एक अहम दिन होता हें । सिगारेट , गुटका , पान , सराव जेसे जहरीला चीज से लोगो को दूर रखने के लिए , जाती संघ के '' विश्व स्वास्थ्य संगठन '' वा ''वोल्ड हेल्थ ओर्गानैजेसन '' से तरफ से हर साल मै ३१ को लोगो को जागरूक किया जाता हें । इस दिन , विभिन्न सरकारी , वे-सरकारी संथाओं के साथ विभिन्न स्कूल और कालेज की स्टुडेंट भी लोगो को जागरूक लाने के लिए पहल करते हें। इस के अलावा , विभीन्न संथाओं के द्वारा नाटक , सांस्कृतीक कार्यक्रम , संगीत के माद्यम से भी लोगो को टोबाको के खतरनाक परिणाम के विषय मै लोगो को आगाज किया जाता हें । इस के बाबजुड़ , लोग अपनी आदत छोड़ते नही।
सन २००० मै आमेरीका के '' फोरेन एग्रीकल्चर आफीस'' के तरफ से किया गया एक आंकलन के अनुसार, भारत मै ५९५.४ हजार टन टोबाको जेसे विभिन्न जहरीला पदार्थ बिकता हें । ''दी ग्लोबाल तोब्बाको ओर्गानैगेसन '' के तरफ से २००८ मैं , एक आंकलन के अनुसार , भारत मैं , पुरुस ३३.१ % और महीला ३.८ % तोब्बाको सेवन करते हें । भारत मै तोब्बको की मात्रा जादा ही हें । ये तोब्बको की इतिहास बड़ी रोचक हें । सबसे पहेले , आमेरीका मै, तोब्बको , पाईप और स्नाफ़ ब्यबहार किया गया । इस के बाद , सिगार और तोब्बाको ,चुईंगम के रूप मै लोगो ने इस्तिमाल किया। सन १८१२ तक , यूरोप के बाकी हिसो मै तोब्बाको की मांग जोर पकडा। विशेस रूप से , ''शिल्प विप्लब'' के द्वारान तोब्बाको की आछी खासी प्रसार हुई। जिस के वाद, तोब्बाको सारे विश्व मै फेल गया , जो आज लोगो की जरुरत मंद चीज हो चुका हें ।
मोटे दौर पर, ये तोब्बाको १० किसम की होते हें । जेसे , १-आरोमेतिक फईर -क्युर्द , २-ब्राईटलीफ तोब्बाको , ३-बर्ली, ४- कवेंदिश , ५-क्रिओलो ,६- अरिएंटेल तोब्बाको , ७- पेर्कुई , ८-सेड तोब्बाको , ९- व्हाईट बर्ली और १०- वाईल्ड तोब्बाको । ये सारे किस्म की तोब्बाको जहरीला और खतरनाक होते हें । आज कल , टेलीविसन मै अनेक सीरियल और सरकार के तरफ से प्रायोजित कार्यक्रम मै तोब्बाको की भयंकर परिणाम के वारे मै बताया जाता हें । उदाहरण के तोर पर , कोई गुटका /तंबाकू खा कर , यदि आप किसी पौधे पर फेंक देंगे , व पौधा मर जाता हें । इस के अलावा , यदि आप तन्ब्बाकू को मुह मै रात भर रख कर सो जायेंगे , आप जब सुबह उठेंगे , तब आप की मुह मै छेला से भर जायेगा। आप खाने की दूर , आप पानी भी मुस्किल से नसीब हो पायेगा । ये सारे जहरीला चीज का परीणाम के दौर पर , हमें केंसर, किडनी ख़राब जेसे बीमारी का सामना करना पड़ता हें । ''वर्ल्ड हेल्थ ओर्गानैजेसन '' के तरफ के अनुसार , मोटे दौर पर टोबाको खाने से ५ किसम की बिमारी हो सकता हें । जेसे, १-बेक्तेरीया डिजीज , २-फंगल डिजीज , ३- नेमात्रोड्स पारास्तिक , ४- भाईराल अंड माई-कोप्लास्मालैक ओर्गानैजेसन (एम् .एल .ओ ) डिजीज, और ५- मीससेल्लानिऔस डिजीज अंड दिसअदर्स । ये सारे बीमारी सिर्फ़ और सिर्फ़ तंबाकू खाने पर ही होता हें ।
विश्व के दुसरे देश के तरह , हमारे देश मै भी सरकार के तरफ से तोंब्बाको के लिए कड़े कदम उठाया गया । जेसे , १८ वर्ष से निचे की आयु के वक्ती को तोंबाको वेचना दण्डनीय अपराध हें , सव साधारण और होस्पिताल के पास सिगारेट , सराव पीना अपराध माना जाएगा । इस के साथ ही, तोब्बाको कंपानी , अपनी नाम की निचे , ''तोब्बाको इज ईंजरिओउस फॉर हेल्थ '' मोटो लिखना जरुरी किया गया हें । इस साल से , तोब्बाको से जुड़े हर कंपनी , अपनी प्राडक्ट के १/४ % हिस्सा तोब्बाको से होने वाला नुक्सान के वारे मैं चित्र देना , सरकार के तरफ से जरुरी किया गया हें । परन्तु , सरकार भी लाचार हें । कियु की, सरकार और विभीन्न संस्थाओं के द्वारा , मई ३१ को हमें सचेत किया जाता हें । परन्तु , तमाम कोशिश करने के बाबजूद , लोगो के ऊपर कोई असर नही होता हें । नियम -कानून से इस विषय को समाधान नही किया जा सकता हें । जब तक हम सचेत नही होंगे , तब तक कोई कुछ नही कर सकता हें । आख़िर , हामारे स्वास्थय की फिकर ख़ुद को ही करना चाहिए । यदि , आज हम इस विषय को नजर अंदाज कर रहे हें, इस के परिणाम स्वरुप हमें ही आनेवाले वक्त पर भुगतना पड़ेगा । इसलिए , यदि आज हम सचेत होंगे , आनेवाले कल निचित रूप से नई सुबह की नई किरण के रूप मै हमारे जिन्दगी मै उजाला लाएगी ।

Thursday, May 28, 2009

चुनाव....

भाई अगया चुनाव ,
ये लोकतंत्र का सबसे बड़ा महापर्व .....

नेता घर से घर जा कर मांगते हें भोट
वादा पे वादा, सब कुछ कर के दिखायेंगे,
सिर्फ़ मुझे भोट दीजिये
और पाँच साल के लिए ......

आखिर, पाँच साल के बाद ,
फ़िर नेता दीखते हें ,
बीच मै , उनको जनता की याद नही ,
सायद, नेता भूल गए उनके वादा ......

ये देश की नेता भूल जाते हें , जल्दी वादा,
सिर्फ़ पाँच साल के वाद , याद आते हें जनता,
लोग नेताओ के मदत के लिए रोज पिसते हें ,
परन्तु, उनके बात सुनने के लिए कोई नही हें .......

ये भाई लोकतंत्र हें हमारा,
वाहा, वाहा , नेताओ की किया कहेना,
हें भगवान् , इन नेताओं को थोड़ा सदबुद्धि देना .......

Wednesday, May 27, 2009

ये चुनाब फिल्मी हें ....

ये चुनाब फिल्मी हें । जी हाँ , मौजूदा साल हुई , पंदरवा चुनाब को देख कर ये ही प्रतीत हो रहा हें । इस साल की चुनाब मै, नेताओ के लिए कोई मुदा ही नही था । हमारे नेताओ के लिए, लोगो की मौलिक समस्या, जेसे- विजुकी, सड़क और पानी की कोई अहम् मुदा नही था । एसे लग रा था, जेसे देश मै कोई समस्या ही नही था । एक बात सच हे, हमारे नेताओ को पिछले चुनाब मै किया हुआ वादा आज तक , पूरा हुआ या नही । ये तो सिर्फ़ देश की जनता ही बता सकते हे ।
हमारे नेताओ कोई चुनाब स्टाईल किसी फ़िल्म शो से कम नही था । चुनाब प्रचार के द्वारान एक्टिंग, स्क्रिप्ट के साथ पीछे से दिरेक्टोर की भूमिका भी सुर्खिया बनी। इस देश की नेताओं को पता हे, ये देश की वोटर बहत भोले होते हें, जिनको धर्म, जाती, भासा के नाम पर आपसे लढाई कर ख़ुद फाईदा ले सकते हो । सिर्फ़ आग मै घी डालना चाहिए । जी हाँ, मौजूदा दौर की सभी छोटे और बड़े नेताओं की ये ही स्टाईल । देखए ना, मुना भाई अभिनय से नेता बने और उसके बाद, समाजबादी पार्टी के महासचिब संजय दत की स्टाईल । वह उत्तर प्रदेश राज्य के मयु मै, उनको बीते हुए कल की याद आगया । उनके बात को माने तो , वह कहेते हें, वह जब जेल मै थे, उनको ये कहेकर मार रहे थे, कियु की उनकी माँ मुस्लिम थी। इस बात को राजनैतिक विश्लेषण से जुड़े लोगो का कहेना हे, मुना भाई को, आख़िर इतने साल के बाद , वह बात कियु याद आया । यदि ये बात सच हे, संजय डट तब कियु अदालत को नही बताया
और, मुना भाई को सिर्फ़ मौऊ जेसे मुस्लिम आबादी इलाका मै ही ये बात याद आया । ये बात साफ़ हे, वह अनजाने मै नही कहा । वह तो राजनीति मै नए हे । जाहिर सी बात हे, ये चालाकी समाजबादी पार्टी की महासचिब अमर सिंह की होगी या मुलायम सिंह यादब की होगी । ये सकुनी की चाल ,हामारे लोगो को पता केसे होगा, आख़िर परधे की पीछे किया खिचडी पक रही हें ।
वेसे ही , बीजेपी के नेता वरुण गांधी की , पीलीभीत मै दिया भड़काओ भासन किसी से छुपा नही हें । वरुण गांधी से एक कदम आगे, बिहार के किसानगंज मै, आर.जे.दी के नेता लालू प्रसाद यादव ने दिया हुआ भासान , मौजूदा दौर मै गुजरती लोकतंत्र की बदहाली का ये छोटा सा नमूना हे । इस दौर मै, सभी छोटे , बड़े और वरिस्थ नेता ने आपनी आपनी छाप छोड़ी हें ।
मौजूदा दौर की हालत मै, नेताओं को मीडिया मै आपनी मज्दुगी दिलाने के लिए , नेता कुछ भी बोल लेते हें, वह ये भी कभी सोचते नही, उनके ये बात से किसी के दिल को ठेस पहंच सकता हे या उनकी जख्मी मै नमक डालना जेसे ही होगा । आज हर जगह पर धर्म, भासा, और जाती के नाम पर लढाई होता हे । हामारे नेता, इस लढाई का ऐ.सी रूम मै मजा लेते हें । इस लिए आज वक्त आगया, हम वोट डालने से पहेले , उनकी ख़ुद की पहेचान की बदले उनकी , निर्वाचन खेत्र मै किया हुआ विकाश और दुसरे पहेलु को देख कर वोट देंगे । इसलिए, '' वोटर जागो
वोटर जागो '' ।

Sunday, January 11, 2009

आज की बचे,आनेवाले कल की सीतारे हें...

विश्व मैं सभी देशो से , भारत सबसे अलग हें। कियु की, यहाँ , बिभीन धर्म , भाषा , और जाती के लोग , एक साथ रहेते हें। सभी नकरी कर के , पैसा जमा करते हें, और अपनी भाबिस्य के लिए सोचते हें। परन्तु, एसे भी बहत लोग हें, जो स्वल्प कमाई बजह से , जादा कुछ , अपनी परिवार के लिए कर नही पाते हें। इस देश मैं कोई, एसी-घर बनाता हें, कोई एक , पका मकान बनाने के लिए , जिन्दगी भर लग जाता हें। फ़िर भी , अपनी परिवार के साथ , सभी , खुसी और गम के साथ रहेते हें।
भले ही , सरकार का योजना और आंकडा , गरीवी हटाओ की कोशीश करता हें, परन्तु, हकीकत हें, आज भी, आजादी के ६० साल बाद भी , बहत लोग ''गरीवी रेखा'' के निचे मै, हें। आप, हर राज्यों की , ग्रामीण इलाके की सफर कीजीये , तब एहेसास होगा, सरकार की गरीवी हटाओ की नारे खोकला साब्यस्त हो रहा हें। झुदी- झुप्दियो मैं, बतर हालत मैं, लोग रहेते हें। वहां, के बचो की पढाई की बागडौर , सुरु होने से पहेले ही, ख़तम हो जता हें। छोटी सी उमर से, बोचो को काम करने जाना पड़ रहा हें। कियु की , माँ-बाप की जोर होता हें, बचे पढाई की जगह , कुछ काम कर के रोजगार करे। माँ-बाप की , ये सोच ग़लत हें, परन्तु, व, अपनी परिस्थितियों की बजह से, मजबूर हें। यदि, बचे काम पर नही जाएँगे, घर की चुला केसे चलेगा ? ये गरीवी, आम आदमी को ब्याबस करता हे, कम मजदूरी मैं काम करने के लिए, आखीर दो वक्त की रोटी के लिए हे ना....
कौन नही चाहता हें , उसका बच्चा पढाई कर के , तरकी करे । हर माँ-बाप की सपना होता हें, उनकी बचे , कुछ बन कर , अपनी जीबन अच्छा से गुजारे। परन्तु, ये सभी सपना , हर किसी का पूरा नही होता हें। आप, ग्रामीण इलाकों से मुड कर , सहरी और महानगर इलाकों मैं बापस आईये। आपको, रेलवे स्टेसन, ट्राफिक सिग्नाल, मन्दिर और मार्केट मैं , एसे बहत बचे मिल जायेंगे , जिनका उमर १०-१२ साल की निचे होता हें। देश की राजधानी दिल्ली , जहाँ , सरकार की आईन-कानून बना जाता हें, वहां पर, आपको , हर तरफ वाल-श्रमीक मिल जायेंगे। दिल्ली मैं, सरकार की नाक की निचे, बनाई गयी कानून की धजिया उडाया जा रहा हें। ट्रेन मैं , बचे सफाई कर कर पैसा मांगते हें। कभी कभी , इस बहाने चोरी भी करते हें। ये छोटा मोटा चोरी से , भाबिस्य मैं, उनको एक बिशाल अन्धकार की गुनाह मैं, भेज देता हें। ये , मज़बूरी , उन बोचो की जिन्दगी बन जता हें। जेसे, मिर्ची चोरी से विरापन, चंदन तस्कर बना था। जब आप , ट्राफिक सिग्नाल पर खड़े होते हें, तब कुछ बचे पेपर , मैगजीन बेचते हुए नजर देख सकते हें। व सभी बचो की उमर १५ साल की निचे ही होंगे। जिस बोचो की उमर, पेपर , मैगजीन पढने की हें, परन्तु, इस उमर मैं ,व पेपर , मैगजीन बेचने के लिए मजबूर हें। हमें, मार्केट मैं, बहत ही कम उमर की बचो को कुछ ना कुछ बेचते हुए नजर आएंगे। मुझे याद हें, मैं पिछले १५ अगस्त को , दिल्ली के आई.न.ऐ मार्केट गया था। वहां, मैं ७-८ साल की उमर की लड़की को रसी बेचती हुए देखा। मैं, रसी का कीमत पूछ कर, बापस आरहा था, उस वक्त, व लड़की ने, कहेना लगा - '' बाबूजी रसी ले जाओ, आप को कम कर के देता हूँ'' । व छोटी सी बची ने, जिस तरीके से मुझे खरीद ने के लिए कहा, व बास्तविक मैं बहत ही, दर्दनाक था। मैं, उस लड़की से , पढाई की वारे मैं पुचा। उसकी जबाब था- ''ना येही काम करती हूँ ...'' । उसकी बातों से मुझे लग रहा था, व पढ़ना चहाता हें, परतु, व मजबूर हें। तब मुझे महेसुस हुआ, चाहत किया होता हें। एक तरफ व बची हें, जो चाहाते हुए भी, पड़ नही पाती हें, दुसरे तरफ , व बचे हें, जो पढाई की हर सुबिधा होते हुए भी, नही पढ़ते हें। । आज भी मैं, जब, आई.न.ऐ मार्केट हुए , गुजरता हूँ, व छोटी लड़की की झलक नजर आता हें। जिस उमर मैं, व खेलने की उम्र थी, उस उमर मैं, व सडक के किनारे पर , रसी बेच रही हें। उस लड़की जेसा, पुरे देश भर मैं , आपको सेंकोडो बचे मिल जायेंगे, जो एसी हालत मैं, बेवस की जिन्देगी गुजारते हें।
भारत मैं , वाल-श्रमिक को हटाने और , कम उम्र की बचो को शीख्या देने सम्भंधीय कानून बनी हुई हें। जेसे भारत की संभीधान की धारा २४ के अनुसार-'' १४ साल से कम उम्र के बचो को , खान, उद्योग जेसे बीपद्जनक जगह पर काम करने के लिए इजाजत नही हें ''। भारतीय संभीधान की धारा ४५ कहेता हें-'' १४ साल से कम उम्र के बचो को मुफ्त मैं पढाई का बन्दोव्स्थ किया जाए'' । इस के अलावा, भारतीय संभीधान के ८६ वा संभीधान के द्वारा, धारा ५१(क) कहेता हें, '' १४ साल से कम उम्र के बचो को कंपलसरी शिख्स्या देने की बात किया गया हें '' । इस के साथ साथ , भारत सरकार ने, बाल-श्रमिक कानून बनाई हें। जिस मैं, कानून की नजर अंदाज़ करने बाले मालीको के खीलाप शक्त कानूनी करवाई का भी प्राबधान हें।
परन्तु, सरकार कानून बना कर पला झाड़ लेता हें। इन बाल-श्रमिकों के लिए कोई दूसरी विकल्प मुहया नही करता हें। इसका, खामीयाजा , उस बचो के भुगतना पड़ता हें, जिनकी कमाई के भरसे, उनके परिवर का रोजी -रोटी चलता हें। कियु की, कानून बजह से, कोई कम उम्र के बचो को , काम करने के लिए रखता नही। आखीर मैं, व बचे सर्ट-कट या चोरी की रास्ता को चुनते हें। इसे ही, जादातर , गरीवी से तंग आकर, पैसा कमाने के लिए, गुनाह की दुनिया मै दाखीला लेते हें।
वाल- श्रमीक, एसा बिषय हें, जो आज की कमोवेश समाज की स्थितयों की बयान करता हें। वाल-श्रमिक का समाधान , आईन-कानून की शक्ती से समाधान नही होगा। इस के लिए, सबसे पहेले, लोगो को सचेतना होना होगा। देश की बड़े बड़े कंपनियों को, गरीवी बचो की मदत करने के लिए आगे अना चाहिए। इस के अलावा, केन्द्र-राज्यों सरकार को मिल कर, इस समस्या का हल ढूंढना पडेगा। वाल-श्रमिक का समाधान, पहल और , कोशिश से ही, अंत हो सकता हे। कियु की, आज के बचे, आने वाला कल की सितारे हें....

Tuesday, January 6, 2009

हम साथ साथ हें

भारत १५ अगस्त १९४७ को स्वाधीन हुआ , और २६ जनवरी १९५० को गणतंत्र रास्ट्र के रूप मैं, विश्व स्टार पर , अपनी पहेचन बनाई। हम व, सभी दर्दनाक हादसों को भूल नही पाएँगे, जो भारत के स्वाधीन होने के वक्त हुआ था। आज भी, व दंगो को याद करके , लोग सहमे जाते हें। बस्ताविक , यहाँ घटना होने के बाबजूद भी, लोगो ने , अपनी हीमत नही खोया, और होसले के साथ , सब कुछ भूल कर, नई सुबह की , नई किरण के साथ, अपनी अपनी , जिन्देगी की सुरुवात फ़िर किया।
आहिस्ता आहिस्ता, भारत की लोगो की जिन्देगी, पटरी पर दौड़ने लगा , और , एक नई उमीद लेकर , देश की प्रगती मैं साझेदारी बने। आज, उस हिमत का नतीजा के रूप मैं, बारात मैं, रिलाईंस, टाटा, बिरला, मीतल जेसे विश्व के बड़े बड़े कंपनियों ने , दुनिया के सामने खडा हें। भारत की स्वाधीनता के ६० साल बाद , भारत की तस्वीर , दुनिया मैं, एक उज्वल -ग्लोबल देश की रूप मैं, उभर कर आया हें। इस के साथ साथ , भारत साईंस, तकनीक, शिल्प, बाणिज्य और राख्या मामलो मैं, अबल हें, और, दुनिया के प्रमुख पाँच रास्त्रो के बाद, भारत अपनी दबेदारी थोक रहा हें।
भारत की प्रगती के तरफ कदम उठामें, भारत की लोगो के रास्त्रो प्रती, बिस्वास, देशभक्ति , और एकता जेसे भाबना भी अहम् रहा हें। आज, भारत स्वाधीनता के ६० साल बाद भी , यही एकता के बदौलत, अनेक धर्म, जाती, भाषा,और राज्यों के बाबजूद , हम एक हें। इसलिए, सारा दुनिया के सामने, हामारे देश की अलग ही पहेचान हें। परन्तु, इस साल की ख़तम होते होते , इसे प्रतीत हो रा हे , ये एकता मैं, आहिस्ता आहिस्ता , छेद हो रहां हें। कियु की, आज कुछ दिनों से धर्म धर्म-धर्म के विच संप्रदईक्ता दंगा भड़क रहा हें, जाती- जाती के विच भेद , और, भाषा-भाषा के विच टकराब जेसे अन्चालिक्ताबाद का तान्दाब रूप दिखने लगा हें।
कियु एसा हो रहा हें ? हामारे बनाई हुई एकता, बिस्वास को, कौन तोड़ना चाहता हें ? हम हकीकत को जानने से पहेले ही, दुसरो की, बथो से, कियु, बेहेकाब मैं, आते हें ? ये सारे सबाल, आज भारत-माता , ये मतुभुमी , हमें, चिला चिला करके पुच रहा हें,- आखीर कियु , धर्म, जाती , भाषा के नाम पर , आपसे लाद रहे हो ? आखीर कियु, हिन्दुस्थान एक होने के बाबजूद , हामारे दिल मैं, दुसरे की प्रती , इतनी घृणा कियु कियु कियु ?
ये सारे सबाल , आज मौजूदा हालत मैं बार बार उठ रहा हें। परन्तु, कोई , इस बिसय को मालूम करने की इच्छा शक्ति नही हें। हम, दुसरे की बथो से, बहेकर , ग़लत कदम उठा लेते हें, जो की , हम लोग ही, जोश मैं, होश खो कर , परिसानी झेलना पड़ता हें। आगे जाकर , हम या हमारे रिश्तेदारों को, बहत मुशिव्त का सामना करना पड़ता हें। परन्तु, जो लोग, हामारे द्वारा , ये सब घीलोना हरकत करवाते हें, व , अपनी फाईदा की चाकर मैं रहेते हें, और , सब कुछ देख कर भी दृस्त्रस्ता बन जाते हें। हम, अदालत से ठोकर खा कर , जेल मैं, चाकी पिसते हें। तब , हम लोगो की हालत पूछने बाला कोई नही होता हें। आखीर , ग़लत काम का नतीजा, भयानक ही होता हें।
खेर, इस साल मैं, ये आशा करना चाहिए , पिछले साल जेसा, भयानक और दर्दनाक घटनाओ का सिलसिला थम कर , फ़िर से दुबारा दोहरा ना जाए। जो हुआ , सो हुआ। हम , सब कुछ भूलकर , आपस की तनाब को बिराम दे कर , हम लोग फ़िर आगे मिल कर बढ़ेंगे। जिस मैं, इस मिती या देश मैं, फ़िर से रोनक आयेगा, और, देश की खोया जा रहा पहेचन फ़िर बापस आयेगा। आखीर, हम सब एक हे ना ....