Sunday, January 11, 2009

आज की बचे,आनेवाले कल की सीतारे हें...

विश्व मैं सभी देशो से , भारत सबसे अलग हें। कियु की, यहाँ , बिभीन धर्म , भाषा , और जाती के लोग , एक साथ रहेते हें। सभी नकरी कर के , पैसा जमा करते हें, और अपनी भाबिस्य के लिए सोचते हें। परन्तु, एसे भी बहत लोग हें, जो स्वल्प कमाई बजह से , जादा कुछ , अपनी परिवार के लिए कर नही पाते हें। इस देश मैं कोई, एसी-घर बनाता हें, कोई एक , पका मकान बनाने के लिए , जिन्दगी भर लग जाता हें। फ़िर भी , अपनी परिवार के साथ , सभी , खुसी और गम के साथ रहेते हें।
भले ही , सरकार का योजना और आंकडा , गरीवी हटाओ की कोशीश करता हें, परन्तु, हकीकत हें, आज भी, आजादी के ६० साल बाद भी , बहत लोग ''गरीवी रेखा'' के निचे मै, हें। आप, हर राज्यों की , ग्रामीण इलाके की सफर कीजीये , तब एहेसास होगा, सरकार की गरीवी हटाओ की नारे खोकला साब्यस्त हो रहा हें। झुदी- झुप्दियो मैं, बतर हालत मैं, लोग रहेते हें। वहां, के बचो की पढाई की बागडौर , सुरु होने से पहेले ही, ख़तम हो जता हें। छोटी सी उमर से, बोचो को काम करने जाना पड़ रहा हें। कियु की , माँ-बाप की जोर होता हें, बचे पढाई की जगह , कुछ काम कर के रोजगार करे। माँ-बाप की , ये सोच ग़लत हें, परन्तु, व, अपनी परिस्थितियों की बजह से, मजबूर हें। यदि, बचे काम पर नही जाएँगे, घर की चुला केसे चलेगा ? ये गरीवी, आम आदमी को ब्याबस करता हे, कम मजदूरी मैं काम करने के लिए, आखीर दो वक्त की रोटी के लिए हे ना....
कौन नही चाहता हें , उसका बच्चा पढाई कर के , तरकी करे । हर माँ-बाप की सपना होता हें, उनकी बचे , कुछ बन कर , अपनी जीबन अच्छा से गुजारे। परन्तु, ये सभी सपना , हर किसी का पूरा नही होता हें। आप, ग्रामीण इलाकों से मुड कर , सहरी और महानगर इलाकों मैं बापस आईये। आपको, रेलवे स्टेसन, ट्राफिक सिग्नाल, मन्दिर और मार्केट मैं , एसे बहत बचे मिल जायेंगे , जिनका उमर १०-१२ साल की निचे होता हें। देश की राजधानी दिल्ली , जहाँ , सरकार की आईन-कानून बना जाता हें, वहां पर, आपको , हर तरफ वाल-श्रमीक मिल जायेंगे। दिल्ली मैं, सरकार की नाक की निचे, बनाई गयी कानून की धजिया उडाया जा रहा हें। ट्रेन मैं , बचे सफाई कर कर पैसा मांगते हें। कभी कभी , इस बहाने चोरी भी करते हें। ये छोटा मोटा चोरी से , भाबिस्य मैं, उनको एक बिशाल अन्धकार की गुनाह मैं, भेज देता हें। ये , मज़बूरी , उन बोचो की जिन्दगी बन जता हें। जेसे, मिर्ची चोरी से विरापन, चंदन तस्कर बना था। जब आप , ट्राफिक सिग्नाल पर खड़े होते हें, तब कुछ बचे पेपर , मैगजीन बेचते हुए नजर देख सकते हें। व सभी बचो की उमर १५ साल की निचे ही होंगे। जिस बोचो की उमर, पेपर , मैगजीन पढने की हें, परन्तु, इस उमर मैं ,व पेपर , मैगजीन बेचने के लिए मजबूर हें। हमें, मार्केट मैं, बहत ही कम उमर की बचो को कुछ ना कुछ बेचते हुए नजर आएंगे। मुझे याद हें, मैं पिछले १५ अगस्त को , दिल्ली के आई.न.ऐ मार्केट गया था। वहां, मैं ७-८ साल की उमर की लड़की को रसी बेचती हुए देखा। मैं, रसी का कीमत पूछ कर, बापस आरहा था, उस वक्त, व लड़की ने, कहेना लगा - '' बाबूजी रसी ले जाओ, आप को कम कर के देता हूँ'' । व छोटी सी बची ने, जिस तरीके से मुझे खरीद ने के लिए कहा, व बास्तविक मैं बहत ही, दर्दनाक था। मैं, उस लड़की से , पढाई की वारे मैं पुचा। उसकी जबाब था- ''ना येही काम करती हूँ ...'' । उसकी बातों से मुझे लग रहा था, व पढ़ना चहाता हें, परतु, व मजबूर हें। तब मुझे महेसुस हुआ, चाहत किया होता हें। एक तरफ व बची हें, जो चाहाते हुए भी, पड़ नही पाती हें, दुसरे तरफ , व बचे हें, जो पढाई की हर सुबिधा होते हुए भी, नही पढ़ते हें। । आज भी मैं, जब, आई.न.ऐ मार्केट हुए , गुजरता हूँ, व छोटी लड़की की झलक नजर आता हें। जिस उमर मैं, व खेलने की उम्र थी, उस उमर मैं, व सडक के किनारे पर , रसी बेच रही हें। उस लड़की जेसा, पुरे देश भर मैं , आपको सेंकोडो बचे मिल जायेंगे, जो एसी हालत मैं, बेवस की जिन्देगी गुजारते हें।
भारत मैं , वाल-श्रमिक को हटाने और , कम उम्र की बचो को शीख्या देने सम्भंधीय कानून बनी हुई हें। जेसे भारत की संभीधान की धारा २४ के अनुसार-'' १४ साल से कम उम्र के बचो को , खान, उद्योग जेसे बीपद्जनक जगह पर काम करने के लिए इजाजत नही हें ''। भारतीय संभीधान की धारा ४५ कहेता हें-'' १४ साल से कम उम्र के बचो को मुफ्त मैं पढाई का बन्दोव्स्थ किया जाए'' । इस के अलावा, भारतीय संभीधान के ८६ वा संभीधान के द्वारा, धारा ५१(क) कहेता हें, '' १४ साल से कम उम्र के बचो को कंपलसरी शिख्स्या देने की बात किया गया हें '' । इस के साथ साथ , भारत सरकार ने, बाल-श्रमिक कानून बनाई हें। जिस मैं, कानून की नजर अंदाज़ करने बाले मालीको के खीलाप शक्त कानूनी करवाई का भी प्राबधान हें।
परन्तु, सरकार कानून बना कर पला झाड़ लेता हें। इन बाल-श्रमिकों के लिए कोई दूसरी विकल्प मुहया नही करता हें। इसका, खामीयाजा , उस बचो के भुगतना पड़ता हें, जिनकी कमाई के भरसे, उनके परिवर का रोजी -रोटी चलता हें। कियु की, कानून बजह से, कोई कम उम्र के बचो को , काम करने के लिए रखता नही। आखीर मैं, व बचे सर्ट-कट या चोरी की रास्ता को चुनते हें। इसे ही, जादातर , गरीवी से तंग आकर, पैसा कमाने के लिए, गुनाह की दुनिया मै दाखीला लेते हें।
वाल- श्रमीक, एसा बिषय हें, जो आज की कमोवेश समाज की स्थितयों की बयान करता हें। वाल-श्रमिक का समाधान , आईन-कानून की शक्ती से समाधान नही होगा। इस के लिए, सबसे पहेले, लोगो को सचेतना होना होगा। देश की बड़े बड़े कंपनियों को, गरीवी बचो की मदत करने के लिए आगे अना चाहिए। इस के अलावा, केन्द्र-राज्यों सरकार को मिल कर, इस समस्या का हल ढूंढना पडेगा। वाल-श्रमिक का समाधान, पहल और , कोशिश से ही, अंत हो सकता हे। कियु की, आज के बचे, आने वाला कल की सितारे हें....

Tuesday, January 6, 2009

हम साथ साथ हें

भारत १५ अगस्त १९४७ को स्वाधीन हुआ , और २६ जनवरी १९५० को गणतंत्र रास्ट्र के रूप मैं, विश्व स्टार पर , अपनी पहेचन बनाई। हम व, सभी दर्दनाक हादसों को भूल नही पाएँगे, जो भारत के स्वाधीन होने के वक्त हुआ था। आज भी, व दंगो को याद करके , लोग सहमे जाते हें। बस्ताविक , यहाँ घटना होने के बाबजूद भी, लोगो ने , अपनी हीमत नही खोया, और होसले के साथ , सब कुछ भूल कर, नई सुबह की , नई किरण के साथ, अपनी अपनी , जिन्देगी की सुरुवात फ़िर किया।
आहिस्ता आहिस्ता, भारत की लोगो की जिन्देगी, पटरी पर दौड़ने लगा , और , एक नई उमीद लेकर , देश की प्रगती मैं साझेदारी बने। आज, उस हिमत का नतीजा के रूप मैं, बारात मैं, रिलाईंस, टाटा, बिरला, मीतल जेसे विश्व के बड़े बड़े कंपनियों ने , दुनिया के सामने खडा हें। भारत की स्वाधीनता के ६० साल बाद , भारत की तस्वीर , दुनिया मैं, एक उज्वल -ग्लोबल देश की रूप मैं, उभर कर आया हें। इस के साथ साथ , भारत साईंस, तकनीक, शिल्प, बाणिज्य और राख्या मामलो मैं, अबल हें, और, दुनिया के प्रमुख पाँच रास्त्रो के बाद, भारत अपनी दबेदारी थोक रहा हें।
भारत की प्रगती के तरफ कदम उठामें, भारत की लोगो के रास्त्रो प्रती, बिस्वास, देशभक्ति , और एकता जेसे भाबना भी अहम् रहा हें। आज, भारत स्वाधीनता के ६० साल बाद भी , यही एकता के बदौलत, अनेक धर्म, जाती, भाषा,और राज्यों के बाबजूद , हम एक हें। इसलिए, सारा दुनिया के सामने, हामारे देश की अलग ही पहेचान हें। परन्तु, इस साल की ख़तम होते होते , इसे प्रतीत हो रा हे , ये एकता मैं, आहिस्ता आहिस्ता , छेद हो रहां हें। कियु की, आज कुछ दिनों से धर्म धर्म-धर्म के विच संप्रदईक्ता दंगा भड़क रहा हें, जाती- जाती के विच भेद , और, भाषा-भाषा के विच टकराब जेसे अन्चालिक्ताबाद का तान्दाब रूप दिखने लगा हें।
कियु एसा हो रहा हें ? हामारे बनाई हुई एकता, बिस्वास को, कौन तोड़ना चाहता हें ? हम हकीकत को जानने से पहेले ही, दुसरो की, बथो से, कियु, बेहेकाब मैं, आते हें ? ये सारे सबाल, आज भारत-माता , ये मतुभुमी , हमें, चिला चिला करके पुच रहा हें,- आखीर कियु , धर्म, जाती , भाषा के नाम पर , आपसे लाद रहे हो ? आखीर कियु, हिन्दुस्थान एक होने के बाबजूद , हामारे दिल मैं, दुसरे की प्रती , इतनी घृणा कियु कियु कियु ?
ये सारे सबाल , आज मौजूदा हालत मैं बार बार उठ रहा हें। परन्तु, कोई , इस बिसय को मालूम करने की इच्छा शक्ति नही हें। हम, दुसरे की बथो से, बहेकर , ग़लत कदम उठा लेते हें, जो की , हम लोग ही, जोश मैं, होश खो कर , परिसानी झेलना पड़ता हें। आगे जाकर , हम या हमारे रिश्तेदारों को, बहत मुशिव्त का सामना करना पड़ता हें। परन्तु, जो लोग, हामारे द्वारा , ये सब घीलोना हरकत करवाते हें, व , अपनी फाईदा की चाकर मैं रहेते हें, और , सब कुछ देख कर भी दृस्त्रस्ता बन जाते हें। हम, अदालत से ठोकर खा कर , जेल मैं, चाकी पिसते हें। तब , हम लोगो की हालत पूछने बाला कोई नही होता हें। आखीर , ग़लत काम का नतीजा, भयानक ही होता हें।
खेर, इस साल मैं, ये आशा करना चाहिए , पिछले साल जेसा, भयानक और दर्दनाक घटनाओ का सिलसिला थम कर , फ़िर से दुबारा दोहरा ना जाए। जो हुआ , सो हुआ। हम , सब कुछ भूलकर , आपस की तनाब को बिराम दे कर , हम लोग फ़िर आगे मिल कर बढ़ेंगे। जिस मैं, इस मिती या देश मैं, फ़िर से रोनक आयेगा, और, देश की खोया जा रहा पहेचन फ़िर बापस आयेगा। आखीर, हम सब एक हे ना ....