भारतीय रेल या बंगाल रेल की शीर्सक को पढ़ कर , पाठक यदि असमंजस मै मत रहिये । जी हाँ , प्रधानमंत्री डॉ .मनमोहन सिंह की विभागों का बाँटने के वाद , पश्चिम बंगाल की त्रुलमूल कांग्रेस की नेत्री ममता वानार्जी को रेल विभाग मिलने के बाद , ये ही लग रा हें । ममता दीदी , अब एक नया परंपरा सुरु किए । व न्यू दिली के रेल भवन के बदले , कोलकाता के पूरब रेल मै अपनी काम काज सुरु किया । ममता दीदी की २०११ मै , पश्चिम बंगाल मै होने वाले विधान सभा चुनाब के लिए , एक पालिटिकल स्टांड हें । परन्तु, याहा पर ये सवाल उठता हें , रेल विभाग जेसे महत्वपूर्ण विभाग की आंचलिककारन करना किया सही हें ? फ़िर से, राजनैतिक फाईदा के लिए, रेल विभाग का राजनैतिककरण तो नही हो रा हें ? ''आमार बांग्ला '' के नाम पर ममता वानार्जी रेल विभाग को पुरे तरह से , पश्चिम बंगाल के अन्दर , आपनी राजनैतिक फाईदा के लिए इस्तेमाल किया कर रहे हें ।
ये सभी का जबाब जो भी हो , सच ये ही हें, महारासत्रा मै भयंकर रूप लेना वाला आन्चिलिक्तावाद, आज सरकारी विभाग को भी अपनी वस मै ले चुका हें । इस मैं कोई दोहराई नही, ममता वानार्जी के वाद , अगले रेल मंत्री न्यू दिली के बदले अपनी राज्य के किसी रेल जोन मै काम काज करेंगे । तो, दिली मैं रेल विभाग का हेड आफिस रहेने का कोई मतलब ही नही हें । आज ये आन्चिलिक्वाद खतरनाक हो रा हें । महारासत्रा मै उत्तर भारतीय के खिलाप विस के विज बुना जा रहा हें , तामिलनाडू मैं हिन्दी भाषी लोगो के खिलाप अपनी जहर उगालते हें । यदि , आज तत्कालीन उप- प्रधानमन्त्री वलभ भाई पटेल होते , उनको जरुर ठेस पहंचता । कियु की, व बिखरते भारत को एक करने के मैं उनका योगदान, आज ब्यर्थ हो गया । आज की नेता , अपनी स्वार्थ के लिए , ये आन्चिलिक्बाद का जहर , जो लोग के मन मै फेला कर फाईदा उठाते हें । हम , उनके ताल मै ताल मिला कर हाँ भरते हें । भारत मै , संभिधान को लागू करने के वक्त कहा गया था, भारत अनेक धर्म , अनेक भाषा और अनेक जाती के बाबजुड़ भारत एक हें । फ़िर , आज हमारे विच आपसी द्वेष कियु ? आजादी से पहले , कभी एसा हुआ था, ना आजादी के वाद कभी हुआ हें । ये कुछ साल की अन्दर , हमारे अन्दर दुसरे की प्रती इतने नफरत कियु ?
आज ममता वानार्जी की पहल पर भले ही कोई विरोध ना करे , यदि कल दुसरे नेता एसे करते , निश्चित रूप से विरोध होगा । नेताओं को अपनी मौजूदा फाईदा से जुड़े कोई बड़े कदम उठाने से पहेले , इस का भाबिस्य परिणाम के वारे मैं जरुर सोचना चाहिए । इसलिए , ममता वानार्जी को ''भारतीय रेल'' को , अपनी राजनैतिक फाईदा के लिए , ''बांगला रेल '' की सकल देना ठीक नही हें ।
Monday, June 1, 2009
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1 comment:
बिलकुल ठीक लिखा आपने..पहले रेल का बिहारी करण हुआ ..अब बंगाली करण होगा..!ये देश हित में नहीं है ..!रेल एक राष्ट्रीय धरोहर है जो किसी राज्य विशेष से जुडी हुई नहीं है..
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