Friday, June 12, 2009

इतिहास की दहलीज पर भारतीय महीला.....

मौजूदा १५ वी लोक सभा मैं चारो तरफ महीलाओ की बोल बाल हे । क्यो की , पहेली वार , ५८ महीला सांसद ,जनता के द्वारा चुन कर संसद आए । स्वाभाबीक रूप से , इस वार लोक सभा की बाचस्पती की पद भी पहेली वार मीरा कुमार की रूप मै एक महीला की खाते मै ही गयी । जो बिहार की सासाराम संसदीय खेत्र से कांग्रेस की प्रतियासी की रूप मै जीत दर्ज की थी । व , अब तक ५ वार सांसद के रूप मैं जनता के द्वारा चुन कर संसद आए । अब राजनैतिक गलियारों मैं चर्चा जोर पर हें , मीरा कुमार की बाचस्पती की रूप मै चुन जाने के बाद ,'' महीला आरख्यन वील'' को पारीत कर ने मैं अहम अहम मदत मिल सकता हें । वेसे , यदि लोक सभा मै , ''महीला आरख्यन वील'' को पारीत कर ने मैं , सायद यु .पी .ए सरकार को इतना मसतकत करना नही पड़ेगा। क्यो की , लोक सभा मै कांग्रेस और यु .पी ए की घटक दल की समर्थन के साथ साथ एन.डी.ए की बी.जे.पी और उसके घटक दल की समर्थन भी ''महीला आरख्यन वील'' के साथ हे । हाँ , बी,जे.पी की साथी ज.डी.यु इस के खिलाप हे । ज.डी.यु के साथ साथ समाजवादी पार्टी और आर.जे.डी भी इस वील को विरोध कर रहे हें ।
बहत दिन से , ''महीला आरख्यन वील '' ठंडे बसते मैं पडा था । क्यो की , एन.दी.ऐ की सरकार की अमल
मैं पूर्ब प्रधानमंत्री अटल विहारी बाजपेई ने इस वील को पारित करने के लिए कोशिश किया था , परन्तु, घटक दल की विरोध के हेतु और संसद मैं एन.दी,ऐ के पास बहुमत नही होने वजे से, अटल जी ने इस विल को आगे नही बढाया । परन्तु, अब कांग्रेस के पास तो बहुमत हें और साथ ही उसके घटक दल इस वील को सहमती दे चुके हें
अब, कांग्रस तो इस मुधे को अगले लोक सभा चुनाव मैं भुनाने के लिए को कसर नही छोडेगी। खैर ये तो था , ''महीला आरख्यन वील '' और इस से जुड़े राजनीती ।
परन्तु, भारत मैं , बहत महीलाये हें , जो देश की नाम को दुनिया भर मैं रोशन कर चुकी हें । उनमें से, विजय- लखमी पंडित, इन्दीरा गांधी , सरोजिनी नाईदु , मदर तरसा, कल्पना चावाला , लता मंगेशकर और सईना नेहेवाल जेसे महीलाये प्रमुख हें । आज , हम हामारे देश की कोरोदो मतदाताओं के ऊपर गर्व होना चाहीये , क्यो की वह , आज देश मैं महिला नेतृत्व को हमेसा भरोषा किया हें, उनमें से , सोनिया गांधी , मायाबती , जयललिता,
ममता वानार्जी, और वसुंधरा राजे जेसे सक्सीयत को लोगो ने भारी मोटो से जीता कर सता की चाबी दिया । इस सबसे बड़ी बात हें , हमारे देश की मौजूदा रास्त्रपती प्रतिवा देवी सिंह पाटिल एक महिला हें । आज महिलाओं ने पुरुस केंद्रित समाज मैं , आहिस्ता आहिस्ता जड़ मजबूत कर के , आज समूचे भारत वर्ष के साथ पुरे दुनिया मैं अपनी पहेचान बनाई ।
एक दीन था , हामारे देश की महीलाएं घर की काम की अलावा और कुछ भी नही आता था। व , घर से कभी भी नही निकल पाते थे । परन्तु , अब वक्त बदल चुका हें । आज ईम्तीहान मैं लड़को से लडकिया पढाई मैं आगे हें और हर मोड़ , हर जगह पर पुरूस से महीलाएं सबसे आगे हें । आज स्तिथी और वक्त दोनों बदल चुका हें । आज महिलायें इतने आगे जाने के बाबजूद भी , हम अभी भी दहेज़ उद्पिदन , मानसिक यातना और बलात्कार जेसे घिलोना वारदातें हमारे सामने आती हें । वाकई, ये सभी वाएदातें सरमनाक हें । फ़िर भी , आमिर खान जेसे ऐक्टर के द्वारा लोगो को जागृत करने के लिए जो पहल किया जा रा हें, व वास्तब मैं सरकार की कदम की तारीफ़ करना चाहिए । विभीन्न समस्या से भरा इस भारत वर्ष मैं , महिलाए आगे जा कर देश की प्रगती मैं एक अच्छी साझेदारी निभाएंगे , ये ही हमारे आशा और उमीद हें ।

Monday, June 1, 2009

भारतीय जन-आन्दोलन और नक्सलवादी

कुछ दिन पहेले , देश मैं चुनाव संपर्ण हुआ । सरकार के तरफ से चुनाव को सांति मै करने के लिए कड़े कदम उठाये थे । विशेष रूप से , नक्सल इलाकों मैं , राज्य सरकारों ने बहत अहम कदम लिया गया था। परंतु सारे वादे खोकले निकला । ओडिशा, झारखंड राज्यों मैं तो नक्सल ने जेसे तबाही मचाया , इस का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता हें, फ़िर जब दुवारा चुनाव किया गया , तब पोलिंग बूथ आकर भोट डालने के लिए किसीने भी हीमत नही जुटा पाया। कियु की, नक्सल ने कहीं ई.भी.एम् मशीन को तोडा , कहीं पोलिंग ऑफिसर को जक्मी किया । नक्सलवादियों ने , झारखंड राज्य मै पहली वार , एक पसिंजर ट्रेन को कुछ वक्त तक अपहरण कर लिया । चुनाव के द्वारान ,ओडिशा के माल्कंगिर जिले मैं , नक्सलवादियों ने जिस तरह से , अपनी मंसुवे को अंजाम दिया, इस से साफ़ पता चलता हें , हाल ही कुछ दिनों मैं , नक्सलवादियों की खोपनाक तस्वीर सामने नजर आरहा हें । अक्सर , हम नक्सल वारदातों के वारे मैं , आए दिन सुनते हें । विशेष रूप से, ओडिशा , झारखण्ड , आन्ध्र प्रदेश और छातिशगद राज्यों से रोज नक्सल की भयानक कारनामें सुर्खिया बनती हें । जो केन्द्र और राज्य सरकारों के लिए सीरदर्द बना हुआ हें । यहाँ पर , हमारे मन मैं सवालों से विचलित कर रहा होगा, आख़िर नक्सलवादी काहाँ से आए ? कियु आज नक्सलवादी भयानक हो गए ?
पश्चिम बंगाल के पर्वतीय जिले दार्जिलिंग के नक्सलवाड़ी पुलिस थाने के इलाके मैं १९६७ मैं एक किसान विद्रोह उठ खडा हुआ । इस विद्रोह को अगुवाई माक्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के स्थानीय केडर के लोग कर रहे थे । नक्सलवाड़ी पुलिस थाने से शुरू होने वाला यह आन्दोलन भारत के कोई राज्यों मैं फ़ैल गया । इस आन्दोलन को ''नक्सलवादी आन्दोलन'' के रूप मैं जाना जाता हें । १९६९ मैं नक्सलवादी सी.पी.आई. (एम्) से अलग हो गए और सी.पी.आई.(माक्सवादी-लेनिनवादी) नाम से एक नयी पार्टी चारु मजुमदार के नेतृत्व मैं बनायी । इस पार्टी की दलील थी की भारत मैं लोकतंत्र एक छलावा हें । इस पार्टी ने क्रांती करने के लिए गुरिल्ला युद्घ की रणनीती अपनायी ।
नक्सलवादी आन्दोलन ने धनी भुस्वमियों से बलपूर्वक जमीन छीनकर गरीव और भूमीहीन लोगो को दी । इस आन्दोलन के समर्थक अपने राजनैतिक लख्यो को हासील करने के लिए हिंसक साधनों के इस्तेमाल करने मैं दलील देते थे । इस वक्त कांग्रेस -शासित पश्चिम बंगाल सरकार ने निरोधक नजरवंदी समेत कई कड़े कदम उठाये , लेकिन नक्सलवादी आन्दोलन रूक न सका। बाद के सालों मैं , यह देश के कई भागो मैं फ़ैल गया। नक्सलवाड़ी आन्दोलन अब कई दलों मैं से कुछ जेसे सी.पी.आई.(एम्एल-लिबरेशन ) प्रमुख हें । फिलहाल ९ राज्यों के लगभग ७५ जिले नक्सलवादी हिंसा से प्रभावित हें । इनमें अधिकार बहुत पिछडे इलाके हें और यहाँ आदिवासियों की जनसंख्या ज्यादा हें । इन इलाकों मैं बंटाई या पटते पर खेतिवादी करने वाले तथा मजदूरी जेसे अपने बुनियादी हकों से भी वंचित हें । जबरिया मजदूरी , वाहरी लोगों द्वारा संसाधानों का दोहन तथा जमीदारों द्वारा शोषण भी इन इलाकों मैं आम बात हें । इन स्थितियों से नक्सलवादी आन्दोलन मैं बढोतरी
हुई हें ।
नक्सलवाद की पृष्ठभूमी पर अनेक फ़िल्म भी बनी हें। महेस्व्ता देवी के उपन्यास और गोविन्द निहलानी के द्वारा निर्धेशीत ''हजार चौरासी की माँ '' एसी ही एक फ़िल्म हें ।
आज नक्सल आन्दोलन , देश की एक प्रमुख समस्या रूप मैं खडी हें । आतंकवाद के साथ नक्सलवाद , सरकार के लिए एक चुनौती बनगया हें । यदी , तत्कालीन पश्चिम बंगाल सरकार , तब विद्रोह की ऊपर कारवाई करने की बदले , वे विद्रोह स्थाई हल के लिए कोशिश किए होते , आज देश के सामने नक्सलवादी के रूप मैं नही खडी
होती । यदी, राजनैतिक पहल की कमी, भोटे बैंक की खियाल और पुलिस की भ्रस्त नही होते , बहत पहेले ही, इस समस्या की समाधान किया गया होता । परन्तु, आज नक्सलवादियों को पकड़ने के लिए , सरकार करोडो रूपये , पानी के तरह बहा रहे हें । परिणाम , दिन पर दिन , ये समस्या भयंकर होती रही हें । इसलिए , केन्द्र और राज्य सरकारों को ''नक्सल समस्या'' और इन से जुड़े आन्दोलन की एक नयी तरह से हल निकालनी होगी । दलगत राजनीती से ऊपर उठ कर , कोई पहल किया जाए , तब इस समस्या को हल हो सकता हें ।

भारतीय रेल या बंगाल रेल ?

भारतीय रेल या बंगाल रेल की शीर्सक को पढ़ कर , पाठक यदि असमंजस मै मत रहिये । जी हाँ , प्रधानमंत्री डॉ .मनमोहन सिंह की विभागों का बाँटने के वाद , पश्चिम बंगाल की त्रुलमूल कांग्रेस की नेत्री ममता वानार्जी को रेल विभाग मिलने के बाद , ये ही लग रा हें । ममता दीदी , अब एक नया परंपरा सुरु किए । व न्यू दिली के रेल भवन के बदले , कोलकाता के पूरब रेल मै अपनी काम काज सुरु किया । ममता दीदी की २०११ मै , पश्चिम बंगाल मै होने वाले विधान सभा चुनाब के लिए , एक पालिटिकल स्टांड हें । परन्तु, याहा पर ये सवाल उठता हें , रेल विभाग जेसे महत्वपूर्ण विभाग की आंचलिककारन करना किया सही हें ? फ़िर से, राजनैतिक फाईदा के लिए, रेल विभाग का राजनैतिककरण तो नही हो रा हें ? ''आमार बांग्ला '' के नाम पर ममता वानार्जी रेल विभाग को पुरे तरह से , पश्चिम बंगाल के अन्दर , आपनी राजनैतिक फाईदा के लिए इस्तेमाल किया कर रहे हें ।
ये सभी का जबाब जो भी हो , सच ये ही हें, महारासत्रा मै भयंकर रूप लेना वाला आन्चिलिक्तावाद, आज सरकारी विभाग को भी अपनी वस मै ले चुका हें । इस मैं कोई दोहराई नही, ममता वानार्जी के वाद , अगले रेल मंत्री न्यू दिली के बदले अपनी राज्य के किसी रेल जोन मै काम काज करेंगे । तो, दिली मैं रेल विभाग का हेड आफिस रहेने का कोई मतलब ही नही हें । आज ये आन्चिलिक्वाद खतरनाक हो रा हें । महारासत्रा मै उत्तर भारतीय के खिलाप विस के विज बुना जा रहा हें , तामिलनाडू मैं हिन्दी भाषी लोगो के खिलाप अपनी जहर उगालते हें । यदि , आज तत्कालीन उप- प्रधानमन्त्री वलभ भाई पटेल होते , उनको जरुर ठेस पहंचता । कियु की, व बिखरते भारत को एक करने के मैं उनका योगदान, आज ब्यर्थ हो गया । आज की नेता , अपनी स्वार्थ के लिए , ये आन्चिलिक्बाद का जहर , जो लोग के मन मै फेला कर फाईदा उठाते हें । हम , उनके ताल मै ताल मिला कर हाँ भरते हें । भारत मै , संभिधान को लागू करने के वक्त कहा गया था, भारत अनेक धर्म , अनेक भाषा और अनेक जाती के बाबजुड़ भारत एक हें । फ़िर , आज हमारे विच आपसी द्वेष कियु ? आजादी से पहले , कभी एसा हुआ था, ना आजादी के वाद कभी हुआ हें । ये कुछ साल की अन्दर , हमारे अन्दर दुसरे की प्रती इतने नफरत कियु ?
आज ममता वानार्जी की पहल पर भले ही कोई विरोध ना करे , यदि कल दुसरे नेता एसे करते , निश्चित रूप से विरोध होगा । नेताओं को अपनी मौजूदा फाईदा से जुड़े कोई बड़े कदम उठाने से पहेले , इस का भाबिस्य परिणाम के वारे मैं जरुर सोचना चाहिए । इसलिए , ममता वानार्जी को ''भारतीय रेल'' को , अपनी राजनैतिक फाईदा के लिए , ''बांगला रेल '' की सकल देना ठीक नही हें ।

विश्व तोब्बाको निषेध दिवस

मई ३१ को विश तोब्बाको निषेध दिवस के रूप मै मनाया जाता हें। ये दिन, विश स्वाथ्य केलेंडर मै एक अहम दिन होता हें । सिगारेट , गुटका , पान , सराव जेसे जहरीला चीज से लोगो को दूर रखने के लिए , जाती संघ के '' विश्व स्वास्थ्य संगठन '' वा ''वोल्ड हेल्थ ओर्गानैजेसन '' से तरफ से हर साल मै ३१ को लोगो को जागरूक किया जाता हें । इस दिन , विभिन्न सरकारी , वे-सरकारी संथाओं के साथ विभिन्न स्कूल और कालेज की स्टुडेंट भी लोगो को जागरूक लाने के लिए पहल करते हें। इस के अलावा , विभीन्न संथाओं के द्वारा नाटक , सांस्कृतीक कार्यक्रम , संगीत के माद्यम से भी लोगो को टोबाको के खतरनाक परिणाम के विषय मै लोगो को आगाज किया जाता हें । इस के बाबजुड़ , लोग अपनी आदत छोड़ते नही।
सन २००० मै आमेरीका के '' फोरेन एग्रीकल्चर आफीस'' के तरफ से किया गया एक आंकलन के अनुसार, भारत मै ५९५.४ हजार टन टोबाको जेसे विभिन्न जहरीला पदार्थ बिकता हें । ''दी ग्लोबाल तोब्बाको ओर्गानैगेसन '' के तरफ से २००८ मैं , एक आंकलन के अनुसार , भारत मैं , पुरुस ३३.१ % और महीला ३.८ % तोब्बाको सेवन करते हें । भारत मै तोब्बको की मात्रा जादा ही हें । ये तोब्बको की इतिहास बड़ी रोचक हें । सबसे पहेले , आमेरीका मै, तोब्बको , पाईप और स्नाफ़ ब्यबहार किया गया । इस के बाद , सिगार और तोब्बाको ,चुईंगम के रूप मै लोगो ने इस्तिमाल किया। सन १८१२ तक , यूरोप के बाकी हिसो मै तोब्बाको की मांग जोर पकडा। विशेस रूप से , ''शिल्प विप्लब'' के द्वारान तोब्बाको की आछी खासी प्रसार हुई। जिस के वाद, तोब्बाको सारे विश्व मै फेल गया , जो आज लोगो की जरुरत मंद चीज हो चुका हें ।
मोटे दौर पर, ये तोब्बाको १० किसम की होते हें । जेसे , १-आरोमेतिक फईर -क्युर्द , २-ब्राईटलीफ तोब्बाको , ३-बर्ली, ४- कवेंदिश , ५-क्रिओलो ,६- अरिएंटेल तोब्बाको , ७- पेर्कुई , ८-सेड तोब्बाको , ९- व्हाईट बर्ली और १०- वाईल्ड तोब्बाको । ये सारे किस्म की तोब्बाको जहरीला और खतरनाक होते हें । आज कल , टेलीविसन मै अनेक सीरियल और सरकार के तरफ से प्रायोजित कार्यक्रम मै तोब्बाको की भयंकर परिणाम के वारे मै बताया जाता हें । उदाहरण के तोर पर , कोई गुटका /तंबाकू खा कर , यदि आप किसी पौधे पर फेंक देंगे , व पौधा मर जाता हें । इस के अलावा , यदि आप तन्ब्बाकू को मुह मै रात भर रख कर सो जायेंगे , आप जब सुबह उठेंगे , तब आप की मुह मै छेला से भर जायेगा। आप खाने की दूर , आप पानी भी मुस्किल से नसीब हो पायेगा । ये सारे जहरीला चीज का परीणाम के दौर पर , हमें केंसर, किडनी ख़राब जेसे बीमारी का सामना करना पड़ता हें । ''वर्ल्ड हेल्थ ओर्गानैजेसन '' के तरफ के अनुसार , मोटे दौर पर टोबाको खाने से ५ किसम की बिमारी हो सकता हें । जेसे, १-बेक्तेरीया डिजीज , २-फंगल डिजीज , ३- नेमात्रोड्स पारास्तिक , ४- भाईराल अंड माई-कोप्लास्मालैक ओर्गानैजेसन (एम् .एल .ओ ) डिजीज, और ५- मीससेल्लानिऔस डिजीज अंड दिसअदर्स । ये सारे बीमारी सिर्फ़ और सिर्फ़ तंबाकू खाने पर ही होता हें ।
विश्व के दुसरे देश के तरह , हमारे देश मै भी सरकार के तरफ से तोंब्बाको के लिए कड़े कदम उठाया गया । जेसे , १८ वर्ष से निचे की आयु के वक्ती को तोंबाको वेचना दण्डनीय अपराध हें , सव साधारण और होस्पिताल के पास सिगारेट , सराव पीना अपराध माना जाएगा । इस के साथ ही, तोब्बाको कंपानी , अपनी नाम की निचे , ''तोब्बाको इज ईंजरिओउस फॉर हेल्थ '' मोटो लिखना जरुरी किया गया हें । इस साल से , तोब्बाको से जुड़े हर कंपनी , अपनी प्राडक्ट के १/४ % हिस्सा तोब्बाको से होने वाला नुक्सान के वारे मैं चित्र देना , सरकार के तरफ से जरुरी किया गया हें । परन्तु , सरकार भी लाचार हें । कियु की, सरकार और विभीन्न संस्थाओं के द्वारा , मई ३१ को हमें सचेत किया जाता हें । परन्तु , तमाम कोशिश करने के बाबजूद , लोगो के ऊपर कोई असर नही होता हें । नियम -कानून से इस विषय को समाधान नही किया जा सकता हें । जब तक हम सचेत नही होंगे , तब तक कोई कुछ नही कर सकता हें । आख़िर , हामारे स्वास्थय की फिकर ख़ुद को ही करना चाहिए । यदि , आज हम इस विषय को नजर अंदाज कर रहे हें, इस के परिणाम स्वरुप हमें ही आनेवाले वक्त पर भुगतना पड़ेगा । इसलिए , यदि आज हम सचेत होंगे , आनेवाले कल निचित रूप से नई सुबह की नई किरण के रूप मै हमारे जिन्दगी मै उजाला लाएगी ।