Saturday, February 27, 2010

आमार रेलवे.....

आमार रेलवे की ये शीर्षक को पढ़ कर , पाठक यदि असमंजस मैं मत रहिये, जी हाँ , प्रधानमंत्री डॉ .मनमोहन सिंह की विभागों का बाँटने के वाद , पश्चिम बंगाल की त्रुलमूल कांग्रेस की नेत्री ममता वानार्जी को रेल विभाग मिलने के बाद , ये ही लग रा हें । ममता दीदी , इस साल संसद पेस किये गए रेलवे बजट मैं ज्यादातर पर्योजोनाएं सिर्फ और सिर्फ प.बंगाल के लिए ही थाममता दीदी की २०११ मै , पश्चिम बंगाल मै होने वाले विधान सभा चुनाब के लिए , एक पालिटिकल स्टांड हें । परंतु यहाँ पर ये सवाल उठता हैं , रेल विभाग जेसे महत्वपूर्ण विभाग की आन्चालिककरण करना क्या सही हें ? फ़िर से, राजनैतिक फाईदा के लिए, रेल विभाग का राजनैतिककरण तो नहीं हो रा हैं ? ''आमार बांग्ला '' के नाम पर ममता वानार्जी रेल विभाग को पुरे तरह से , पश्चिम बंगाल के अंदर , आपनी राजनैतिक फाईदा के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं । ये सभी का जबाब जो भी हो , सच ये ही हैं , आज की वक्त मैं, आंचलिकतावाद, अब सरकारी विभाग को भी चपेट मै ले चुका हैं । इस मैं कोई दोहराई नहीं , ममता वानार्जी के वाद , अगले रेल मंत्री नई दिल्ली के बदले अपनी राज्य के किसी रेल जोंन मै काम काज करेंगे । तो, दिल्ली मैं रेल विभाग का हेड आफिस रहेने का कोई मतलब ही नहीं हैं । आज ये आन्चालिक्तावाद भयंकर रूप ले चुका हैं । महाराष्ट्र मै उत्तर भारतीय के खिलाप विश के विज बुना जा रहा हें , तामिलनाडू मैं हिन्दी भाषी लोगो के खिलाप अपनी जहर उगालते हें । यदि , आज तत्कालीन उप- प्रधानमन्त्री वलभ भाई पटेल होते , उनको जरुर ठेस पहंचता । कियों की, व बिखरते भारत को एक करने के मैं उनका योगदान, आज ब्यर्थ हो गया । आज की नेता , अपनी स्वार्थ के लिए , ये आन्चिलिक्बाद का जहर , जो लोग के मन मै फेला कर फाईदा उठाते हें । हम , उनके ताल मै ताल मिला कर हाँ भरते हें । भारत मै , संभिधान को लागू करने के वक्त कहा गया था, भारत अनेक धर्म , अनेक भाषा और अनेक जाती के बाबजूद भारत एक हें । फ़िर , आज हमारे विच आपसी द्वेष कियों ? आजादी से पहले , कभी एसा हुआ था, ना आजादी के वाद कभी हुआ हें । ये कुछ साल की अन्दर , हमारे अन्दर दुसरे की प्रती इतने नफरत कियों ?
आज ममता वानार्जी की पहल पर भले ही कोई विरोध ना करे , यदि कल दुसरे नेता एसे करते , निश्चित रूप से विरोध होगा । नेताओं को अपनी मौजूदा फाईदा से जुड़े कोई बड़े कदम उठाने से पहेले , इस का भविष्य परिणाम के वारे मैं जरुर सोचना चाहिए । इसलिए , ममता वानार्जी को ''भारतीय रेल'' को , अपनी राजनैतिक फाईदा के लिए , ''बांगला रेल '' की सकल देना ठीक नही हें

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