Tuesday, December 23, 2008

नियोजित बिकाश की राजनीति

इस्पात की बिस्वयापी मांग के बढ़ते हुए, आंकलन और भारत मैं सभी प्राकृतिक संपद का गछित होना, बिदेशी कंपनियों का भारत के तरफ़ रुख करना लाजमी हें। यह बात सही हें, सरकार भी , ये सोच कर कदम उठाती हें, प्राईवेट सेक्टर की पूंजी बिनियोग से , लोग को साधन मिल जाए और आज के बेरोजगारी दौर पर गुजर रही , देश की हालत मैं , दो दो फाईदा हो सकता हें। ये सोच , मोजुदा ओडिशा सरकार का भी था , जो अब , भारी चर्चा मै बना हुआ हें। कियु की, ओडिशा मैं , कोरिया के कंपनी पोस्को पूंजी लगाना चाहाता हें। उसके साथ साथ , बिरला, टाटा, बेदांत, रेलाईंस जेसे विश्व के बड़े बड़े कंपनियों का भी , ओडिशा के ऊपर नजर हें। परन्तु , सबसे बड़ा परिसानी हें,- आईरन, कोयेला, बाक्साईट, जेसे खान का जो इलाका हें, वो पुरे, अनाग्रसित तथा, आदिवासी इलाका हें। लोग , अपनी जमीन, घर , को छोड़ कर जाना नही चाहाते हें, और, वे सरकार की बिस्थापन निति से खुस नही हें। इसलिए हर जगह पर , बिरुध का माहोल बना हुआ हें।
इस बिसय पर हर किसीका नजरिया अलग अलग हें। अर्थसास्त्री , इस जगतीकरण और उदारीकरण को मोजुदा हाल के लिए ठीक मानते हें। केन्द्र -सरकार को लगता हें, एसे ही , बिदेशी कंपनियों को नाराज किया गया , इस का प्रभाब , विश्व-अर्थनीति पर पडेगा। इसके अलावा, पर्यबरण से जुड़े लोगो का मानना हें, अद्योग बसने से, जंगल, मिती के साथ साथ , प्राकृतिक माहोल के ऊपर भी असर पडेगा। परन्तु, राजनैतिक दलों का अपनी अपनी फाईदा देख रहे हें। कियु की , आछा रकम की नोटों की गदिया , जो कंपनियों से मिल रहा हें। जाहिर सी बात हें, दुसरे दोलो , इसका बिरुद्ध करेंगे। परन्तु, कोई इस मामले को सुलझ ना नही चाहाते हें । जेसे वेस्ट -बंगाल के नंदीग्राम और सिंगुर मैं, टाटा को लेकर गतिरोध बना हुआ हें। एसे ही , ओडिशा मैं , सबसे जादा ७ जगह पर , सरकार और स्थानीय लोगो के विच गतिरोध बना हुआ हें। इस के अलावा , आंध्र-प्रदेश, कर्नाटक, महारास्त्र, पंजाब और हरियाणा मैं एक एक जगह पर गतिरोध बना हुआ हें। किया ये बिकाश का परिभासा हें ? किया कोई जमीन से जुड़े फैसला लेने से पहेले , स्तानीय लोगो का मत लेना नही चाहिए ? किया ये लोक-तंत्र का परिभाषा हें ?
देखा जाए तो, सुरुआती क़दम आछा था, जब पहेला पञ्च-वार्षिक योजना बना गया था। परन्तु, आद्योगीकरण की तेज रफ़्तार ने, पूंजी बिनियोग का एक बेकाबू हिसा हो गया। इस रफ़्तार को बढावा देने मैं , श्री पि. सी. महाल्नोविस, श्री जे. सी. कुमारापा, डॉ. मनमोहन सिंह, जेसे दिगज अर्थासस्त्रियो का हाथ हें। जो खोले बाजार मैं , पूंजी बिनियोग तथा, जगतीकरण और उदारीकरण हेतु, कंपनियों के प्रतियोगिता के विच , सरकार आम-आदमी को भूल जता हें, जिस जमीन पर, आप अद्योग खडा करना चाहेते हें।
सुरुआती दौर मैं, जो जो कदम उठाई गई , व , सभी आज खोखला साबित हो रहा हें। इसका , सबसे बड़े बजा हें, राजनैतिक इच्छा -शक्ति का अभाब हें। अनाज जमीन पर , अद्योग का बिस्तार से , फसल नही हो पा रहा हें, और खाद्य संकट दिखाई दिया। जब , जगतीकरण और उदारीकरण का पहल किया गया था, तब खादिया और ग्रामीण इलाका के वारे मैं , सोचा नही गया था, जो, आज संकट के रूप मैं, उभर रही हें, जो की हम सब को पता हें। इसका ये मतलब हुआ हें, तत्कालीन सरकार और प्रशासन ने , कोई ठोस नीती, योजना नही बनाया था। जिस का परिणाम , आज सब को भुगतना पड़ रा हें।
इसलिए, नियोजित बिकाश की राजनीती मैं , यदि राजनैतिक टकराब , योजना आयोग की बिफल योजना, सुरुआती कदम मैं, कमजोरी कडिया , जेसे स्थितिया जादा होंगे, तब तब , खादिया संकट , भूमि सुधार- आन्दोलन , जेसे परिस्थितिया बार बार आएगी , और इसके लिए , लोग बंगाल के नंदीग्राम और सिंगुर , ओडिशा के कलिंग-नगर , कुजंग जेसे परिस्थितिया बार बार , इतिहास के पनो मैं दोहारा ने के लिए कोशिश करते रहेंगे।

No comments: