आज आंध्र प्रदेश मैं तेलंगाना को लेकर वहां की राजनीति गरमाई हुई हैं । पहले अलग राज्य की समर्थन मैं ,अब विरुद्ध मैं विरोध प्रदर्शन और सामूहिक बंद ने, लोगों की मुसीबत बढ़ा दी हैं । खैर, आज की तेलंगना मुधा, जो स्थानीय आधार पर दिया जा रहा हैं, व एक तरफ जाएज हैं और इसमें कोई नयापन भी नही हैं । इस के लिए भारत की तात्कालिन इतिहास के ऊपर नज़र डालना होगा । आजादी के वाद से ही, अनेक राजनेताओं ने स्थानीय भाषा के आधार पर अलग राज्य बनाने की कही, जो बाद मैं सफल भी हुआ । वैसे , आजादी से पहले सन १९३६ मैं, ही ओडिशा भाषा के आधार पर स्वतंत्र राज्य बन चका था । आज अनेक राज्य स्थानीय तथा खेत्रीय के आधार पर ही बतान हुआ हैं। तब स्थानीय राजनेताओं का तर्क था, स्थानीय वा भाषा के आधार पर राज्य बाँटने से स्थानीयता की पहचान बरकार रहेगी और विकाश मैं अछा मदत मिलेगी । परंतु, आज वक्त बदल चुका हैं और बदल चुका हैं , राजनीति की परिभाषा ।
समय के साथ ही , देश मैं फ्हिर अलग राज्यों के मांग तेजी से पकड़ रही हैं । बिहार को अलग करके झारखंड,
मध्य प्रदेश अलग करके छत्तिसगढ़ और उत्तर प्रदेश को अलग करके उत्तराखंड बनाने के लिए बहत पहले से मांग हो रहा था । आखिर, तत्त्कालिन वाजपयी सरकार ने नयी राज्य के लिए अमली जामा पहना दिया । उसके बाद से ही, आंध्र प्रदेश को अलग करके तेलंगना, महाराष्ट्र को अलग करके विधार्भ और प.बंगाल को अलग करके गोरखालैंड की मांग उठी। झारखंड बनाने के लिए शिबुसोरेन की झारखंड मुक्ती मोर्चा काफी दिनों से मांग कर रही थी । वेसें ही , टी.चंद्र शेखर राव ने तेलंगाना राष्ट्र समिति बना कर , हैदराबाद मैं आंदोलन चला रहे थे। वेसे तर्क यह दिया जा रहा हैं, इस से विकास की धारा आगे बढ़ेगी । यह तर्क से झारखंड की मौजुदा हालत, इस तर्क को विरोधाभास कर रही हैं ।
दश करोड़ से ऊपर आवादि वाले इस देश मैं आज गरीवी का जो चहेरा मिल रहा हैं, वाकई विकास की हकिकत को ज़ाहिर करती हैं । आजादी के बाद, इसी विकास के आधार पर विभाजित क्या गया था । परिणाम स्वरुप, देश मैं किसान आत्महत्या, गरिवी, के संख्या मैं दिन पे दिन बढ़त्तोरी और नक्सलवाद की रूप मैं उभरा हैं । नक्सलवाद भी, भारतीय आर्थिक स्थिती का एक कड़वा सच हैं । यह, सभी jअन्ते हैं , एक किसान विद्रोह से, आज भयंकर नक्सल के रूप मैं उभरा हैं । किया ये विकास की परिभाषा हैं ? क्या विकास केवल अलग तथा पृथक राज्य, विकास की परिभाषा हैं , चूँकि यह कहना गलत नहीं होगा, झारखंड और बिहार की मौजुदा स्थिती क्या हैं ? ओडिशा, छतीसगढ़ और तटीय आंध्र प्रदेश की स्थिति किया हैं ? जाहिर सी बात हैं , यह सारे सवालों की जबाब, हमारे नेताओं के पास नहीं हैं ।
दुनिया भर मैं, भारत एक विभिन्न धर्म, भाषा, और जाति होने के बावजूद, एक हैं । यह एक राष्ट्र की जीता जागता उदाहरण के रूप मैं मिसाल रहा हैं । परंतु, इन सब के आधार पर विकास होना असंभब नही, ये नामुकिन हैं ।
क्योंकि, हिस्से बटने से कभी विकास बढ़ता नही हैं, वल्कि विकास की धारा आगे वाढती हैं । उदाहरण स्वरुप, मंडल कमीशन को लागु कर के रिजर्वेसन ब्यवस्था कि गई। परंतु, आज भी उन आदिवासियों को इसका पूर्ण सफलता नहीं मिल रहा हैं , जो इसका हकदार हैं । हमारे नेता कहते हैं , बटने से विकास निरंतर होता हैं , आज यह आलम क्यों ? कोई सक नहीं, इस सारे सवाल की जवाब भी, हमारे नेताओं के पास नहीं हैं ।
अपनी स्वार्थ और महत्वकंख्या को पूरा करने हेतु , लोगों को वक्रा बना देना, यह कहाँ तक सही हैं ? वैसे, तेलंगना मुद्दे पर चंद्र शेखर राव, बहुत दिन से चुप चाप बैठे थे । व, पिछले यु.पी.ए मंत्री मंडल का हिस्सा भी बने थे । परंतु, हाल ही मैं, समाप्त हुआ विधान सभा और लोक सभा चुनाव आशानुरूप सफलता न मिलने के कारण, उनको अलग तेलंगना राज्य की ट्राम कार्ड खेलना पडा और उस मैं भी यह सफलता हुए । परंतु, रायलसीमा और तटीय आंध्र प्रदेश के विधायक और सांसद के विरोध प्रदर्शन हेतु, अब केंद्र और मुख्यमंत्री रोसैया की मुसीबत बढ़ा दिया हैं, और कोई भी हैदरावाद के तेलंगना की हिस्से मैं जाने के लिए तैयार नही हैं । क्योंकि, यदि तेलंगना राज्य बनता हैं, हैदराबाद भी तेलंगना की हिस्से मैं चला जाएगा । इसलिए , हैदराबाद को अब की चंडीगड़ की तरह बनाने की जारी हैं, फिलहाल इस के लिए कोई तैयार नहीं हैं । परंतु, यदी भविस्य मैं तेलंगना राज्य बनता हैं, हैदरावाद चार राज्यों का राजधानी बनेगा । जी हाँ, अलग तेलंगना राज्य गठन के बाद कभी भी रायलसीमा और तटीय आंध्र एक साथ नही रह पाएंगे । साथ ही , निश्चित रूप से हैदराबाद, चंडीगढ़ की तरह एक केंद्र शाशित प्रदेश बनेगा । अब हुआ ना, हैदरावाद चार राज्यों का राजधानी !
खैर, बात जो भी हो, केंद्र और आंचलिक दल, कोई भी फैसला लोगों की मत को जेहन मैं रख कर नहीं लेरहे हैं । सबको, अपनी पार्टी और खुद की राजनीति भविस्य की फिकर हैं । यह देश की भाग्य की विदवना हैं, देश की जनता, नेताओं को होता हैं । फिर भी, हम आशा करते हैं, कुछ दिन पहले बने, शांती सयुंक्त कमिति, एसा ठोस पहल करे, जिस से यह अलग राज्य की चिंगारी, आने वाले मैं दुवारा ना bha
Saturday, February 6, 2010
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