Friday, February 19, 2010

सस्ती पब्लिसिटी

किसी ने सही कहा हैं- '' यदी किसी कलाकार और राजनेताओं को अपनी किसी चीज का प्रोमोशन हो तो, खुद को
इलट्रोनीक्स मीडिया मैं सुर्खिया मैं रखनी होगी, प्रोमोशन अपने आप हो जायेगी ''। सायद, आजकल ये हट्कंदा कुछ ज्यादा ही इस्तेमाल हो रहा हैं। इस विषय को आप सस्ती पबलिसिटी कहा सकते हैं। इस सस्ती पब्लिसिटी का सबसे बड़ा माद्यम इलट्रोनीक्स मीडिया हैं । राजनेताओं चुनाव के वक्त और फिल्म स्टार आपनी फिल्म के रिलीज के वक्त, कुछ ना कुछ अपनी बयानों से सुर्ख़ियों मैं रहते हैं। हिंदी इलट्रोनीक्स मीडिया तो, इन बयानों को ब्रेकिंग न्यूज बना देती हैं।
कुछ दिनों से मुम्बई मैं, अभिनेता शाहरुख खान और शिवसेना पार्टी के विच घमासान युद्ध जारी हैं। पिछले शुक्रवार को शिवसेना की तमाम विरोध जताने बावजुद भी शाहरुख खान की फिल्म '' माई नेम इज खान '' को सफलतापूर्वक रीलिज हुई। लेकिन, इस फिल्म के लिए किंग खान को प्रोमोशन के लिए ज्यादा मसतकत नहीं करनी पड़ी। शिवसेना की भारी विरोध चलते, पिछले एक हप्तो से, यह फिल्म रीलिज होने से पहले ही सुर्ख़ियों मैं बनी हुई थी । जाहिर सी बात हैं, फिल्म प्रेमियों को फिल्म को फिल्म को देखने की इछुकता बढना लाजमी हैं। यहाँ पर, फिल्म को बैठे बैठे प्रोमोशन मिल गया। वेसे ही पब्लिसिटी का किसा ''थ्री इडियट'' फिल्म के रीलिज होने के द्वारान, इस फिल्म के लेखक चेतन भगत और फिल्म के प्रोयजक विदु विनोद चोपड़ा के विच हुई विवाद मैं, चेतन भगत को अच्छी पब्लिसिटी मिली। यह बात सच हैं कि, शिवसेना कि धमकी और गुंडागर्दी नाजाएज हैं, और
शाहरुख खान ने एसा कोई गलत बयान नही दिया, जिस से आप उनको रास्त्र विरोधी कह सकते हैं। वेसे शिवसेना ने मराठी मानुस को खुस करने के लिए जो मुहिम छेड़ी थी, उसमें व काफी हद तक सफल भी हुआ। वेसे, सस्ती पब्लिसिटी हासिल करने मैं, राजनेताओं सबसे आगे रहते हैं। देखिये ना, राहुल गांधी ने अपनी मुम्बई यात्रा द्वारान, लोगों को खुद को आम बताने की भरपूर कोशिश कि । राहुल गांधी ने खुद को आम बताने के लिए, लोकल ट्रेन मैं लोगों के साथ स्वर हुए, टिकेट काउंटर पर लोगों के साथ खड़े होकर टिकेट खारिदे और बताने कि पुरे कोशिश कि, मैं भी आप के तरह आम हूँ। यदि, राहुल गाँधी, खुद को आम मानते हैं तो लोगों को दिखाने कि किया जरुरत हैं ? परंतु, उनके मुंबई यात्रा के द्वारान, जिस तरिके कि सुरख्या किया गया था, एसा सुरक्या सायद प्रधानमंत्री जी के लिए भी नही होता होगा । एसे सुरख्या के अन्दर रह कर खुद को आम बताने से किया फाईदा ? खैर, राहुल गांधी का यह तो मिशन २०१२ के लिए तयारी हैं । राहुल गांधी ने अपनी मुम्बई यात्रा के द्वारान, अच्छी खासी पब्लिसिटी बौतरे। नेताओं को पता हैं- दूर की सोचना हैं तो तयारी अब से करलो और खुद को हमेसा सुर्ख़ियों मैं रखो । इस पब्लिसिटी पाने के लिए राजनेता किसी हद तक गिर सकते हैं। कुछ दिन पहले, कांग्रेस कि महासचिव दिगविजय सिंह ने अपनी आजमगढ़ के दौरे मैं, दिल्ली के वाटला हॉउस एन्काउंतर के फर्जी बताया और इसके न्यायिक जाँच कराने कि मांग कि । व सिधे सिधे इस एन्काउंतर मैं सहीद हुए, इंस्पेक्टर मोहन चन्द्र शर्मा कि सहादाद ऊपर सवाल उठाया । देश के लिए, इस से और किया दुर्भाग्य हो सकता हैं, इस देश कि एक रास्ट्रीय दल कि महासचिव का इस तरिके कि बयान सामने आया हैं और व दिल्ली आते आते अपनी बयान से मुकरगए।
ये फिल्म स्टार और राजनेताओं कि एसे बहत किसा आपको मिल जायेंगे, जो हमेसा ही सुर्ख़ियों से बने रहना पसंद करते हैं। इस विषय के लिए सिर्फ और सिर्फ हिंदी इलट्रोनीक्स मीडिया जिमेदार हैं। अपनी निजी काम हेतु, फिल्म स्टार और राजनेताओं इलट्रोनीक्स मीडिया मीडिया को खूब इस्तेमाल करते हैं । इलट्रोनीक्स मीडिया अपनी टी.आर.पी बढ़ने कि चकर मैं, इन सभी को अच्छी खासी पब्लिसिटी दिल्वादेते हैं। अतः इलट्रोनीक्स मीडिया को सस्ती पब्लिसिटी से दूर रहना चाहिए। परंतु, सवाल उठती हैं - क्या सस्ती पब्लिसिटी बयान देना उचित हैं, जिस से लोगों कि भावनाओं को आहात पहंचे ? क्या लोगों को भी बिना समझे नेताओं कि बातो मैं प्रभावित होना चाहिए ? ये लोकतंत्र हैं, सायद ये सवालों का जबाब भी लोगों को ही देना हैं ।

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